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मैं यमुना ही बोल रही हूं

तेरे वादे कूट-पीस कर
अपने रग में घोल रही हूं
खबर सही है ठीक सुना है
मैं यमुना ही बोल रही हूं

पथ खोया पहचान भुलाई
बार-बार आवाज लगाई
महल गगन से ऊंचे चढ़कर
तुमने हरपल गाज गिराई

मेरे दर्द से तेरे ठहाके
जाने कब से तोल रही हूं
लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्‍मों को खोल रही हूं

ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी

बड़े यत्‍न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on December 19, 2012 at 6:59pm

मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।..................behad sunder..Shows a protest and spirit..lovely

Comment by Dr.Ajay Khare on December 18, 2012 at 2:46pm

JHA SAHIB PARYABARANKE HOTE LOSS KO YAMUNA KI PIDA  BAHUT SUNDER BADHAI

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 17, 2012 at 9:05am

आज देश कि प्रमुख नदियों पर इस तरह पीड़ा व्यक्त कि जा रही है तो अन्य सरिताओं का हाल क्या होगा? आपने बहुत हि सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आदरणीय राजेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 12:29pm

आप सभी की प्रीतिकर उपस्थिति एवं उत्‍साहवर्धन के लिए हृदय से आभार

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 11, 2012 at 5:12am

पूरा का पूरा गीत जिस भाव और विचार को ले कर बुना गया है , वो तो लाजवाब है ही जिस प्रकार से उसका निर्वहन हुआ है वो और भी अद्भुत है......... कटाक्ष और पीड़ा की अभिव्यक्ति इतनी खूबसूरत  ढंग से की जा सकती है यह महसूस करना  अच्छा लगा ...

बहुत बहुत बधाई राजेश जी 

Comment by seema agrawal on December 8, 2012 at 7:45pm

आनंद आ गया गीत और गीत में समाहित भाव को प्राप्त कर के 

पूरा का पूरा गीत जिस भाव और विचार को ले कर बुना गया है , वो तो लाजवाब है ही जिस प्रकार से उसका निर्वहन हुआ है वो और भी अद्भुत है......... कटाक्ष और पीड़ा की अभिव्यक्ति इतनी खूबसूरत  ढंग से की जा सकती है यह महसूस करना  अच्छा लगा ...

बहुत बहुत बधाई राजेश जी 

Comment by लतीफ़ ख़ान on December 7, 2012 at 8:55pm

जनाब,,राजेश कुमार झा जी ,,, बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,,बधाई ,,, जितनी  बधाइयां दूं फिर भी कम  हैं ,यमुना की व्यथा-कथा पढकर मन भाव विभोर हो उठा ,सुन्दर भावों के साथ शब्द-शिल्प की यह कारीगरी आप के इस गीत में चार नहीं कई चाँद लगा गयी .. आजकल अच्छे गीत पढने नहीं मिलते ,,आपके इस गीत ने मुझे तपते मरुस्थल में सुधा पान करा दिया ..आपके इस कृतित्व के लिए तहे-दिल से मुबारकबाद

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 3:22am

बड़े यत्‍न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।

कटाक्ष को सुन्दर शब्दों से अभिव्यक्त किया है
समय ही तंज़ का है,
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2012 at 8:26pm

ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी

आदरणीय राजेश कुमार जी, यह रचना केवल यमुना का ही प्रतिनिधित्व नहीं कर रही बल्कि भारत की सभी नदियों की वही स्थिति है, नदियाँ हमारी जीवन रेखा मानी जाती हैं, और आज चाहे अनचाहे नदियों को बर्बाद कर रहे हैं | बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2012 at 8:23pm

नदी की आत्मा की व्यथा को बेहद संवेदन शील अंदाज में लिखा है सीधे दिल में उतरते  शब्द जो शायद ही कोई भुला पाए इस कविता के लिए आपकी लेखनी को नमन राजेश जी 

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