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लघुकथा : सुहागन 

(मेरे द्वारा ही लिखी गई भोजपुरी लघुकथा 'पकडुआ बियाह' का हिंदी रूपांतरण)

बहुत दिनों बाद सुमन मायके आई है । अपने कमरे में जाते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । सात साल पहले की घटना आँखों के सामने किसी फ़िल्म की भाति दिखने लगी | सुमन पंद्रह साल की थी और हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी | संध्या का समय था, तीन-चार मोटरसाईकल तेजी से दरवाजे पर आकर रुकीं । रवि को उसके पापा, मामा और चार-पांच लोग बन्दूक के बल पर जबरदस्ती उठा कर लाये थे और कमरे में बिठा कर बाहर से कुण्डी लगा दी गयी, वह कुछ भी नहीं समझ सकी कि आखिर यह हो क्या रहा है | आनन-फानन में उसे नई साड़ी और रवि को कुर्ता एवं पीली धोती पहनाकर आँगन में अगल-बगल बैठा दिया गया | पंडितजी  के मुँह से मंत्र और रवि की आँखों से आँसू धाराप्रवाह बहते रहे | रवि का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उसकी मांग में सिंदूर डलवा दिया गया और सुमन सुहागन हो गई थी | 

सुबह दरवाजे पर बहुत सारे लोग एकत्रित हो गये थे, रवि के पिता जी और उनके कुछ रिश्तेदार भी आये हुए थे, मान मनौव्वल और धमकी का दौर चल रहा था | एक तरफ सुमन के पापा रवि के पिता जी के पैरों पर गिर ’गलती हो गई’ कह कर माफ़ी मांग रहे थे तो दूसरी तरफ सुमन के मामा धमकी दे रहे थे, काफी वाद-विवाद हुआ, अंततः रवि के घर वाले दबाव में आकर सुमन को अपनाने को तैयार हो गये और सुमन विदा होकर रवि के घर आ गई | सुमन समझ गई थी कि उसकी शादी रवि की मर्जी के विपरीत कर दी गई है | 

रवि उस वर्ष इंजीनियरिंग द्वितीय वर्ष के छात्र थे । प्रथम वर्ष में रवि ने कॉलेज में टॉप किया था | शादी के बाद रवि बिलकुल चुप रहने लगे, किसी से कोई बात नहीं करते, केवल अकेले बैठ कर रोया करते थे | एक दिन माँ जी के समझाने पर रवि खूब रोये और केवल एक वाक्य बोले, "माँ उन लोगों ने तो हमारी सारी इज्जत-प्रतिष्ठा का हरण कर लिया ना" पूरा परिवार सदमे में था और सुमन उस घर में बेचारी बन कर रह गई थी | रवि उस वर्ष परीक्षा भी छोड़ दिये | 

खैर, समय का चक्र चलता रहा, रवि पढ़ लिखकर एक सरकारी विभाग में इंजिनियर हो गये हैं, सुमन को भी परिवार के सभी लोग सारी बातों को भुला कर स्वीकार कर लिये, किन्तु रवि नहीं | 

माँ की आने की आहट पा कर सुमन स्वयं को सामान्य करने की असफल प्रयास करने लगी | बेटी का उदास और आँसू सना चेहरा देख माँ एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठीं |
क्या बात है बिटिया ? तुम उदास क्यों हो ? दिन प्रतिदिन तुम्हारा शरीर क्यों कमजोर होता जा रहा है ? वहाँ खाने को ठीक से नहीं मिलता क्या ? तुमको कोई ससुराल में तकलीफ तो नहीं ? तुम्हे सास-ससुर परेशान तो नहीं कर रहे हैं ? 
"नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है, सास-ससुर तो देव तुल्य हैं |"
"ओह ! तो तुम्हारी गोद अभी तक नहीं भरी * इसलिए उदास हो |"
सुमन कुछ न बोल सकी लेकिन उसके आँसू बहुत कुछ कहने में सक्षम थें | 
"बिटिया तुम बिलकुल चिंता नहीं करों, सब ठीक हो जायेगा | मैं आज ही तुम्हारें पापा से कहती हूँ कि वो शहर के बड़े डाक्टर से तुमको दिखा दें |"
"डाक्टर क्या करेगा मम्मी, हो सके तो पापा से कह दो कि, बन्दूक के बल पर मेरी गोद भी भरवा दें |"
*गोद भरी होना  = संतानवती होना 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 9:10am

लघु कथा की आत्मा तक पहुचने हेतु आपका बहुत बहुत आभार शालिनी कौशिक जी |

Comment by UMASHANKER MISHRA on October 26, 2012 at 12:00am

सर्वप्रथम आदरणीय गणेश जी बागी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने भोजपुरी में लिखी रचना को हिंदी में प्रस्तुत किया 

पहले हम सुना करते थे कि कुछ प्रदेशों में बाहुबल से अच्छे होनहार लड़कों का अपहरण कर जबरदस्ती शादी करवा दिया जाता था 

इस घटना को हमारा कल्चर अच्छी तरह समझ सकता है एक बार विवाह होने के बाद,चाहे जबरदस्ती हो या मन से हो या ना हो 

पर हमारी संस्कृति इसे मान्यता प्रदान कर देती है इसी लिए हम भी स्वीकार कर लेते है 

आपने इस छोटी सी कथा में बहुत ही बड़ी एवं दर्दनाक मंजर को प्रस्तुत किया है 

अंतिम लाईन ने तो ह्रदय को झकझोर दिया है 

 ये रचना उन बाहुबलियों के लिए अच्छा सन्देश है कि देखो तुम्हारी कारगुजारी से कैसे दो मासूम 

जिंदगी तबाह हो गई बंद करो ये गोरख काम 

हार्दिक बधाई ......आ.गणेश जी बागी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 25, 2012 at 10:15pm

बलात रिश्ता वह भी दबाव में कराने कि घटनाए आज भी बहुत हो रही है | वास्तव में तो बलात कराया हुआ सम्बन्ध रिश्ता ही नहीं है, क्योंकि वह निभाता ही नहीं है | और यह धार्मिक द्रष्टि से भी अपराध है | इस भावपूर्ण लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री गणेश जी बागी जी 

Comment by shalini kaushik on October 25, 2012 at 9:36pm

बहुत भावपूर्ण लघु कथा है और सही कहा सुमन ने बन्दूक के दम पर वे शादी करवा सकते थे तो गोद भी भरवा सकते थे .ये तो unhe पता ही होना चाहिए की रिश्ते दिल से जुड़ते हैं न की बन्दूक से


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 9:32pm

आह !! क्या कहूँ सौरभ भईया, कुछ लोगो की नासमझी, किसी की जिन्दगी को कैसे तहस नहस करती है यह आपके द्वारा बताई गई घटना से स्पष्ट है, मेरे द्वारा प्रस्तुत लघु कथा भी सत्य घटना से प्रेरित है, इस लघु कथा को प्रस्तुत करते समय मैं किस मानसिक स्थिति से गुजरा हूँ यह मैं ही जानता हूँ |

उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 9:28pm

आदरणीया सीमा जी, क्या कहा जाय, उन माता पिता को, जो अपने बच्चों के साथ इतना बड़ा रिश्क लेते हैं, अपने ही हाथों अपने औलाद की जिन्दगी दांव पर लगा देतें हैं | इस कथा को पसंद करने के लिए आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 9:25pm

लघु कथा को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, दरअसल भोजपुरी वर्जन में मुझे लगा की जो मैं लघु कथा के माध्यम से कहना चाहता था वो गैर भोजपुरी पाठकों तक नहीं पहुँच पा रहा है, इसलिए हिंदी रूपांतरण करना पड़ा |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2012 at 12:58pm

गणेश भाई, इस कथा पर भोजपुरी में मैं अपनी बात साझा कर चुका हूँ.  हृदयद्रावक घटना का उल्लेख है इस कथा में. मैं ऐसी ही एक घटना साझा कर रहा हूँ.

कक्षा पाँच-छः में हम कैसे होते हैं ! तब मेरा एक मित्र हुआ करता था. दिल का खुला, भोला-भाला, गोरा-चिट्टा,  डबर-डबर आँखों हर अनजाने को मानों पीता हुआ ! हमारी पटती थी. पिताजी का ट्रांस्फरेबल जॉब. हम जहाँ-तहाँ पहुँचते रहे. कॉमन फ्रेंड के जरिये उस वक़्त के कइयों की खबर बहुत दिनों तक बनी रही. हमसभी के पिता चूँकि एक ही संस्था से थे सो एक दो का साथ भले शिष्टाचार के दायरे में हो आज भी बना हुआ है. लेकिन उस मित्र का साथ छूट गया. अलबत्ता मेरी स्मृति का वो हिस्सा बना रहा. करीब सत्ताइस-अट्ठाइस सालों बाद एक से मेरी अचानक मुलाकात हुई. हम दोनों देर रात गये तक भूले-बिसरे कइयों को करते रहे. फिर हमने ’उस’ के बारे पूछा.

और, जो कुछा सुना गणेश भाई, मेरे रोंगटे खड़े हो गये. उसका भी अपहरण हुआ था ! ’विवाह’ के लिये ! तब वह पटना के इंजिनियरिंग कॉलेज में था और छुट्टियों में गाँव गया हुआ था. इक्कीस-बाइस साल का वो था तब.  तीन-चार महीने तो वह यों हीं बावला हुआ घूमता रहा, फिर वो सिमरिया घाट पर गंगा के अनगढ़ बहाव में गुम गया. एक संभावना का निर्दयी पटाक्षेप हो गया. आज भी उसकी वो भोली सूरत कौंध जाती है.

आपकी इस कथा ने बहुत कुछ सुलगा दिया है, गणेश भाई.

Comment by seema agrawal on October 25, 2012 at 11:35am

मुझे तो इस विषय में कुछ पता नहीं था पिछले दिनों टी वी पर आने  वाले एक सीरियल से इस बारे में जानकारी मिली थी तब भी विश्वास नहीं कर सकी थी .....सच में इस प्रकार के काण्ड कर के माता-पिता अपनी बेटी का जीवन ही बर्बाद करते हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 11:24am

ओह्ह भगवान् !!!बहुत ही झकझोर कर दिया इस कहानी ने आपसी रंजिश में या कोई भी कारण रहा हो दो जिंदगी बर्बाद कर दी इस के खिलाफ प्रशासन को कठोर नियम बनाने की जरूरत है आदरणीय गणेश जी इस कथा का हिंदी रूपांतर करने के लिए बहुत बहुत आभार 

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