For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है

यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है
अगर उसको बुलायें हम तो पल में आके मिलता है।।


वो कैसा है कहां है किस जगह दुनियां में मिलता है,
तेरे अन्दर,मेरे अन्दर वही आकर मचलता है।


अगर पूछे कोई जीवन क्या है,तो ये कहेंगे हम,
तरलता है,सरलता है,विफलता है,सफलता है।


हज़ारों ख़्वाहिशों के जंगलों में ले गयीं जैसे,
तुम्हारी आँखों में देखें तो सिमसिम कोई खुलता है।


ज़मीं ने जिसको अपनी बाँहों में भरकर मुहब्बत की,
किनारे काटने को फिर वही दरिया उछलता है।


अज़ब है आदमी ही आदमी को मारने को है,
फ़रिश्ता देखिये इन्सान होने को मचलता है।


हमारे हौंसले ही हमसे पहले काम करते हैं,
जहाँ हम मार दें ठोकर वहाँ पानी निकलता है।

  • सूबे सिहं सुजान

Views: 657

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on October 15, 2012 at 12:48am

/अगर पूछे कोई जीवन क्या है,तो ये कहेंगे हम/.. में यदि 'क्या' और 'है' को आपस में बदल दिया जाए, तब मात्रा गिरा सकने वाला संशय और 'फ्लो' वाली समस्या, दोनों समाप्त हो जायेंगे. ऐसा मेरा निजी मत है. :)

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 7, 2012 at 2:07pm

shalini kaushik..........आपका शुक्रिया....

आपने जिस शेर को बेहतर कहा है  अभी तक किसी ने नहीं कहा था।।

मुझे इस शेर पर जो उम्मीद थी वो आपने पूरी की है।।

Comment by shalini kaushik on October 6, 2012 at 11:29pm

हमारे हौंसले ही हमसे पहले काम करते हैं,
जहाँ हम मार दें ठोकर वहाँ पानी निकलता है। nice presentation 

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 6, 2012 at 7:25am

वीनस केसरी....ji आपकी एक समृद टिप्पणी मुझे बेहद खुश कर गई। आपका तहे-दिल से धन्यवाद।

Comment by वीनस केसरी on October 6, 2012 at 1:01am

आये हाए
क्या जोरदार ग़ज़ल पढ़ने को मिली है
दिल बाग बाग हो गया
कुछ बहर ए हजज की गेयता का कमाल और कुछ आपकी समृद्ध कहन का जादू
ग़ज़ल सर चढ़ कर बोल रही है
वह वाह वा जिंदाबाद

कुछ शिल्पगत दोष जरूर हैं ग़ज़ल में जैसे - सिनाद दोष, तकाबुले रदीफ आदि परन्तु ग़ज़ल बहर के आधार पर मंच को पूर्ण रूप से संतुष्ट करती हुई दिख रही है
एक स्थान पर बहर को ले कर कुछ संशय है परन्तु उस बात को लेकर अभी मंच ही अपने संशय को दूर नहीं कर सका है तो उसे  ओ बी ओ मंच पर आपकी भूल नहीं कहा जा सकता है |
मेरा आशय क्या शब्द को एक मात्रिक मानने पर है

हाँ यह जरूर कहूँगा कि कुछ शेर और अच्छे हो सकते हैं
ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 6, 2012 at 12:32am

Er. Ganesh Jee "Bagi"...ji bhut shukriya aaapki zarra nawaji ka

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on October 5, 2012 at 11:18pm

//अज़ब है आदमी ही आदमी को मारने को है,
फ़रिश्ता देखिये इन्सान होने को मचलता है।// बिल्कुल सत्य कहा आपने वर्तमान का परिदृश्य यही है

एक ऐसा वक्त था की .... चौदह साल ठोकरें खाई भाई ने भाई की खातिर

और आज     ........        आज काटता भाई है भाई को भाई की खातिर..        सम्पूर्ण गजल के भाव बहुत ही उन्नत हैं हार्दिक बधाई ऐसे सृजन पर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 5, 2012 at 10:30pm

ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला ला

आदरणीय सूबे सिंह जी, अच्छी ग़ज़ल कही है, केवल मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि ग़ज़ल को फ़ाइनल टच देने से पहले दो-चार बार पढ़कर कुछ अटकने वाले शब्दों को हेर फेर कर लें, बाकी तो मस्त मस्त | बधाई स्वीकार करें |

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 5, 2012 at 10:28pm

Saurabh Pandey...........jiआपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है.।। आपकी बात कहीं हद तक सहीह है।

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 5, 2012 at 10:26pm

vivek mishar ji, aapki partikriya ....mere liye ek urja ka kam karti hai.....aapka bhut danyawad

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service