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हम हो न सकते नीलकंठ

व्योमकेश !
हम हो न
सकते नीलकंठ ....
 गरल कर
धारण स्वयम
तुमने उबारा
संसृति को 
अमिय देवों
ने पिया
झुकना पड़ा
आसुरी प्रकृति को
थम गया
तव कंठ में ही
सृष्टि का विध्वंस
हम हो न सकते ....
साक्षी थे
तुम भी तो
विकराल मंथन के
सर्प सम संतति
समूची
तुम ही चन्दन थे
विष तुम्हें डंसता नहीं
देता हमें शत दंश
व्योमकेश!
हम हो न सकते......
दृष्टि तेजोमय तुम्हारी
पाप  होते भस्म
भव- उदधि में
बहने  वाले
तुच्छ मानव हम
तुम समय के सारथी
 हम काल के बंधक
तुम परे
अवगुंठनों से -
 अपनी  कुंठाएं अनंत
व्योमकेश!
हम हो न सकते......

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Comment

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Comment by seema agrawal on September 26, 2012 at 7:04pm

वाह!!!!!!! विनीता जी सत्य की स्वीकारोक्ति जिस  कागज पर लिखी वह पवित्र हो उठाता है ....नीलकंठ हों सचमुच ही आसान नहीं है ....सुन्दर शब्द चयन के लिए विशेष रूप से बधाई देना चाहूंगी अतुकांत होते हुए भी रचना प्रवाह युक्त है ...बहुत बहुत बधाई 

Comment by Vinita Shukla on September 23, 2012 at 1:25pm

सुन्दर और आत्मीयता से भरी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद संदीप.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 23, 2012 at 3:27am

आदरणीया विनीता जी,

सत्य है.. यदि हर कोई नीलकंठ हो सकने का प्रयास मात्र भी करता तो जीवन का ध्येय और लक्ष्य कब पूर्ण होता कहने की बात नहीं है! किन्तु यह सदैव संभव नहीं है कम से कम मनुष्यों के लिए! आपकी पिछली रचना का आस्वादन किया था किन्तु प्रत्युत्तर नहीं दे पाया था! आपका इस नवीन मंच पर हार्दिक स्वागत है आपके एक पुरातन प्रशंसक एवं अनुज के द्वारा! सादर,

Comment by Vinita Shukla on September 22, 2012 at 1:51pm

आभार आ. गणेश जी 'बागी' जी, सुंदर प्रतिक्रिया व उत्साहवर्धन के लिए.

Comment by Vinita Shukla on September 22, 2012 at 1:38pm

धन्यवाद राजेश कुमारी जी, आपके विचारों के लिए.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2012 at 10:47am

सच में, नीलकंठ होना सबके बस की बात नहीं, बहुत ही प्यारी रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया विनीता जी , उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 22, 2012 at 10:01am

बहुत ही सुन्दर उत्कृष्ट रचना है विनीता जी पर एक पंक्ति में  हम हो न 
सकते नीलकंठ ....में मुझे लगता है की या तो हम हो न सके आना चाहिए या हम हो नहीं सकते आना चाहिए 

Comment by Vinita Shukla on September 21, 2012 at 1:31pm

धन्यवाद लक्ष्मण प्रसाद जी, सराहना के लिए.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 21, 2012 at 11:59am

अच्छा प्रयास आपका व्योमकेश को अपने मन की बात रचना के माद्यम से बताने का, 

कृपया ध्यान दे...

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