For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं चाँद सा सुंदर हुआ नहीं....

मेरे कमरे की खिड़की से खुला आकाश दिखता है,
कल रात ही मैंने ये महसूस किया की,
तारों से भरे काले आकाश में,
एक चाँद हर रोज इंतज़ार मेरा करता है,

लेटे लेटे ही अपने बिस्तर पर,
मैं बातें उससे अक्सर किया करता हूँ,
वो भी रूप बादल हर रोज आता है,
अभी चंद रोज पुरानी ही है मुलाक़ात हमारी,

तब छोटा सा ही तो था, फिर बढ़ते बढ़ते
एक रोज वो पूरा गोल रोटी सा हो गया,
फिर नज़र जैसे किसी की उस चाँद को लगी,
थोड़ा-थोड़ा कर घटने, हर रोज वो लगा,

एक हल्का सा काला टीका उसकी माँ ने,
लगाया तो है उसके भी चेहरे पर,
जैसा मेरी माँ लगती है हर रोज मुझे,
मुझे कभी कोई नज़र नहीं लगती,
उसी छोटे से टीके के कारण तो,
या शायद इस लिए,
की मैं सुंदर नहीं हूँ चाँद सा,

आज बहुत परेशां हूँ मैं,
की रात आधी बीत चुकी है,
और हर रोज का मेरा वो दोस्त,
वो चाँद आज गायब है कहीं,

कल रात भी बहुत कमजोर,
बहुत छोटा सा लग रहा था,
पर आज तो कहीं है ही नहीं,
दुख तो बहुत है मुझे भी,
उसके कहीं खो जाने का,
पर इस बात से मैं खुश भी हूँ,
की मैं चाँद सा सुंदर हुआ नहीं.....

Views: 393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2012 at 2:56pm

चाँद की दैनन्दिनी और आपकी कल्पनायें दोनों को युग्मित होने से एक प्यारी कविता अपना आकार ले सकी है, अच्छी रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय पन्त जी, संभव हो तो प्रोफाइल फोटो अपडेट कर लें |

Comment by Rekha Joshi on September 19, 2012 at 10:52am

अति सुंदर अभिव्यक्ति पियूष जी ,बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2012 at 6:15pm

गहन अभिव्यक्ति सुन्दर प्रस्तुति 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 16, 2012 at 12:45pm
स्वागतम पीयूष भाई! अनूठी और गूढ़ अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती रचना हेतु बधाई स्वीकार करें!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service