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आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
हो निराश क्यों विस्मित मन, तक आशा की यह डोर रहे?
*
मैं खुद बेबस पंछी हूँ,
नाज़ुक पर, कैद सलाखों में,
आखिर क्या विश्वास जगा,
पाऊँगी बेबस आँखों में ?
सपने थे जिन आँखों में, क्यों आँसू अब उन कोर रहे ?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
कण्ट चुभन, हैं जख्मी तन,
मन भी होते घायल क्षण क्षण,
खुशबू थी जिन कलियों में,
क्यों बरसी उन पर घोर अगन ?
बदरी तम की छट जाए, कैसे उजली हर भोर रहे?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
जिनको छूने हैं तारे,
जिनकी मंजिल है यह अम्बर,
उढने से पहले ही क्यों,
विच्छिन्न हुए हैं उनके पर?
नेहाँचल में झट ढक लूँ, जो आज हथेली छोर रहे,
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
*
अरमानों के पंछी की,
कहो कैसे उर्ध्व गति उभरे?
भ्रष्ट व्यवस्था के हाथों,
कैसे कोई जीवन सँवरे?
महिषासुर मर्दन कर दूँ, क्यों रक्त में एक हिलोर रहे?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2012 at 9:24pm

वाह डॉ प्राची जी, बहुत ही खुबसूरत गीत, एक एक पक्ति चुन चुन कर सजाई गई है, बहुत ही प्यारी रचना, बधाई स्वीकार करें |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 8:32pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लादिवाला जी ,\

नवयुवकों-युवतियों के भ्रष्ट व्यस्था के हाथों, पल पल टूटते  सपने सच में  झकझोर देते  हैं .... 
प्रार्थना है कि वो हर मुश्किल राह पर मुस्कुराते हुए बस आगे बढ़ते जाएं.
आपके उम्मीद की किरणों को बिम्बित करते शब्दों हेतु  हार्दिक आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 8:21pm

यह अभिव्यक्ति सराहने के लिए आभार आ. रेखा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 8:19pm

इस रचना पर आपकी शुभकामनाओं हेतु हार्दिक आभार आदरणीय संदीप जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 8:17pm

किसी को आपसे उमीदें हों और आप चाह कर भी उसके लिए कुछ ना कर पाओ, इसी दर्द को शब्दबद्ध करने की कोशिश की है, यह अभिव्यक्ति आपको पसंद आयी इस हेतु हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2012 at 6:00pm

सुन्दर भाव उकेरे आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी आपने, उम्मीद है - 

अब आशा है तम के बदरी छट जायेंगी 
प्राकृत अगली भोंर उजली दिखलाएंगी 
आस भरे ये मासूम नयन, 
कब तलक झकझोरेंगे  
होंगे आश भरे सुखद नयन,
सुखद भँवरे मन हिलोरेंगे |
 
Comment by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 5:28pm

कण्ट चुभन, हैं जख्मी तन,

मन भी होता घायल क्षण क्षण,
खुशबू थी जिन कलियों में,
उन पर बरसी क्यों घोर अगन ?,अति सुंदर अभिव्यक्ति आ डा प्राची जी ,बधाई 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 1:07pm

बेहद सुन्दर प्रवाहमयी और भावात्मक रचना  के लिए मुक्त कंठ से बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीया डॉ. प्राची जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 12:21pm

प्रिय प्राची बहुत सुन्दर प्रस्तुति ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आई --मैं खुद बेबस पंछी हूँ,

नाज़ुक पर, कैद सलाखों में,
आखिर क्या विश्वास जगा,
पाऊँगी बेबस आँखों में ?
सपने थे जिन आँखों में, क्यों आंसू अब उन कोर रहे ?
आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?

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