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"मजदूर"(१ मई मजदूर दिवस पर विशेष)

देह के चमड़ी धुप मे जलावेला,
खून के पसीना बनाके बहावेला,
रुखा सूखा खाके पेट के आग बुझावेला,
सुते खातीर धरती के बिछवना,
अकाश के ओढ़ना बनावेला,
लोग उनका सम्मान मे,
मजदूर दिवस मनावेला ।

सूई से लेके जहाज ले,
सब कुछ मजदूर बनावेला,
ओकरा बादो उनकर नाम,
कबो सामने ना आवेला,
सृजन करीहे मजदूर,
अफसर काटेले फिता,
फिर भी मजदूर आपन,
सेवा हम सब के देता।

सेठ जी जबरन काम करावेले,
मजदूरी मांगे पर डंडा देखावेले,
बंधुवा मजदूर पर सरकार,
कानून देहलस बनाई,
कानून गईल तेल लेवे,
भूखे जब पेट रही ता,
का कानून समझ मे आई ?

आज हम सब मिल के,
दिहल जाव मजदूर भाई के,
मजदूर दिवस के बधाई,
धन्य बाड़े उ लोग जे,
अपना खून पसीना से,
देश के मान देत बाडे बढ़ाई ।

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Comment

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Comment by asha pandey ojha on May 16, 2010 at 2:03pm
bahut khoob Mahesh ji ..bdee steek baat kahee hai aapne ..majdoor kee sthitee ka ..sajeev chitran kiya hai ..!
Comment by Rash Bihari Ravi on May 1, 2010 at 3:55pm
bahut badhia

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 1, 2010 at 3:29pm
Aaj Ist May Majdoor divas par bahut achhi kavita aapney likha hai, badhiya hai,
Comment by Admin on May 1, 2010 at 10:22am
महेश जी आज मजदूर दिवस है और आपने मजदूर दिवस पर कामगारो के व्यथा को व्यक्त करते हुए एक अच्छी भोजपुरी कविता लिखी है, बहुत बढ़िया रचना है, धन्यबाद ,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 30, 2010 at 10:24pm
bahut badhiya likha hai aapne mahesh jee.....aapki likhi hui rachna ka intezaar rahta hai....isi tarah likhte rahe........

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