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प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी 

                 *******

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 24, 2012 at 8:52am

//प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला//

आदरेया राजेश कुमारी जी कुकुभ छंद पर हाथ आजमाने के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें...........यह छंद रचने का बहुत अच्छा व भावपूर्ण प्रयास किया है आपने बस कहीं कहीं पर प्रवाह/गेयता में अवरोध सा आ रहा है अभ्यास से इसे निम्न प्रकार से सुधारा जा सकता है !

थके नहीं वो करें प्रदूषित ,भड़क गई उर में ज्वाला|

कूद पड़ी क्रोधित गंगा तब , सारा जल थल कर डाला||

पुनः बहुत-बहुत बधाई

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2012 at 8:12am

अशोक कुमार रक्तेला जी आपने रचना को सराहा मेरी लेखनी को संबल मिला हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 23, 2012 at 11:06pm

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

बिलकुल सही है प्रकृति के साथ छेड करने का फल सभी को भुगतना पड़ता है.बहुत सुन्दर कुकुभ छंद और आपकी पचासवीं रचना पर आपकी हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 9:56pm

सौरभ पाण्डेय जी आपने रचना को सराहा और मेरी अर्धशतकीय रचना पर टिपण्णी  दी मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 9:43pm

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते रहे आरी
खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी

इस संवेदनशील रचना पर आपका सादर धन्यवाद, आदरणीत राजेशकुमारी जी.

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 8:15pm

आभार राजेश जी :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 8:12pm

सीमा अग्रवाल जी बहुत ख़ुशी हुई आपको यहाँ देखकर आपकी प्रशंसा और शुभकामनाएं सर आँखों पर बहुत प्यारा दोहा भेंट किया आपने 

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 8:03pm

पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता बिलकुल उचित है एक दोहा समर्पित करूंगी उस स्थिति को जिसका बयान आपने अपनी रचना में किया है 
अनावृष्टि दिखती कहीं , और कहीं अतिवृष्टि 

संकेतों में ही अभी, समझाती है सृष्टि 

एक विचार शील रचना के लिए बधाई आदरणीय राजेश जी 
रचनाओं की  golden jubilee के लिए एक बार और बधाई शीघ्र ही आप शतक पूरा करे ऐसी शुभकामनाएं  प्रेषित करती हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 3:57pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 3:56pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार नवल जी 

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