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१. मंहगाई

दिल को देती है तन्हाई,
कभी ना होती उसकी भरपाई !
तुम क्या जानों पीर पराई ,
क्यों सखा सजनी, ना सखा मंहगाई !!

२. नेता

वो जब भी आये बलईयाँ लेता ,
सबके हाल पर चुटकी लेता !
रोज नये आश्वासन देता,
क्यों सखी साजन, ना सखी नेता !!

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Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 11:29am

शुक्रिया राजेश कुमार जी .

Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 11:12am

आप सभी का शुक्रिया .आप के सुझाव सर माथे पर. कृपया ऐसा स्नेह बनाये रखियेगा ताकि मेरे लेखन में निरंतर सुधर हो सकें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2012 at 9:48am

प्रिय नवल बहुत सुन्दर कह्मुकरियाँ लिखी हैं बस हर पंक्ति में १६ मात्राएँ होनी चाहिए शुरू में हम से भी ये गलती होती थी बहुत अच्छा प्रयास शुभकामनायें 

Comment by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 12:19am

अति सुंदर कह मुकरियां नवल जी ,बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 10:48pm

सादर आदरणीय अलबेलाजी.. .

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:46pm

jai ho mahaprabhu ji ki


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 10:43pm

आदरणीय अलबेला जी ने तो सीधा उपसंहार ही लिख डाला है .. :-)))

अनुज नवलजी, खूब पढ़िये और हृदय लगा कर गुनिये,  आपकी रचनाधर्मिता को, देखियेगा, अर्थ मिलता जायेगा.

जय हो.. .

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:31pm

बहुत बहुर धन्यवाद सम्मान्य सूबे सिंह सुजान जी,

सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 21, 2012 at 10:26pm

वाह....दिल से निकले...खुद-ब-खुद.....वाह।।

नवल जी ने भी अच्छा लिखा ..किन्तु अलबेला जी आपने वाक्य में बहुत अर्थपूर्ण व मधुर सुधार किया है।।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2012 at 9:35pm

नवल जी, एक अलग प्रयोग किया है आपने, इस प्रयास पर साधुवाद |

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