For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिसाब ना माँगा कभी 

अपने गम का उनसे 

पर हर बात का मेरी वो 

मुझसे हिसाब माँगते रहे ।

जिन्दगी की उलझनें थीं 

पता नही कम थी या ज्यादा 

लिखती रही मैं उन्हें और वो 

मुझसे किताब माँगते रहे ।

 

काश ऐसा होता जो कभी 

बीता लम्हा लौट के आता 

मैं उनकी चाहत और वो 

मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

 

कुछ सवाल अधूरे  रह गये 

जो मिल ना सके कभी 

मैंने आज भी ढूंढे और वो 

मुझसे जवाब माँगते रहे ।

- दीप्ति शर्मा

Views: 567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 24, 2012 at 1:24pm

सादर,
        काश ऐसा होता जो कभी
    बीता लम्हा लौट के आता
    मैं उनकी चाहत और वो
    मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।
   जिंदगी के अन्यायपूर्ण हिसाब किताब पर लिखी सुन्दर रचना.बधाई.
     कभी गैरों में भी वो अपना नजर आता है,
     आता है जब भी निशाँ दर्द के छोड़ जाता है,

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 6:27pm

सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया दीप्ती जी...

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 1:39pm

दीप्ति जी,

सवाल-जवाब और हिसाब-किताब का कोइ अंत नहीं ! यही हाल इस सब के पीछे छिपे दर्द  का भी है .....इस रचना के माध्यम से आप अपने उद्देश्य में सफल रही हैं .... बहुत बहुत बधाई स्वीकारें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 23, 2012 at 10:30am
सुन्दर भावो की रचना दीप्ती जी,
हिसाब का सिलसिला तो इस जनम तक 
नहीं,यह तो चलता रहेगा सात जनम तक 
Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:50pm

वाह दीप्ति जी,.
बहुत सुन्दर रचना

कुछ सवाल अधूरे  रह गये 

जो मिल ना सके कभी 

मैंने आज भी ढूंढे और वो 

मुझसे जवाब माँगते रहे ।

__अभिनन्दन !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2012 at 10:44pm

दीप्ति जी, आपकी रचना को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ 

जिस ओर आपकी यह रचना इंगित करती है उस ओर एकाकी संवदना का अबाध बहता हुआ दरिया है. आपने उसे बखूबी स्वर दिया है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 10:34pm
"अपनों के प्रश्नचिन्ह ही
तोड़ देते हैं उसे
इतना
कि कभी 
जुड़  न  पाए वो दुबारा..."
बहुत सुन्दर, एक नारी द्वारा पल पल मांगे जाने वाले जवाबों पर उसकी चीत्कार को दिखाती भावपरक रचना के लिए बधाई प्रिय दीप्ति जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2012 at 9:25pm

ना जाने क्यूँ हमेशा नारी ही को ही जबाबदेही बनना पड़ता है उन्ही को जबाब देना पड़ता है जो खुद ही सवाल खड़े करते हैं बहुत अच्छे से दिखाया है अपनी रचना में दीप्ति आपने ...बहुत सुन्दर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service