हाय ! ये कैसा मौसम आया बाबाजी
देख के मेरा मन घबराया बाबाजी
पूरब में तो बाढ़ का तांडव मार रहा
उत्तर में है सूखा छाया बाबाजी
भीषण गर्मी के झुलसाये लोगों को
मानसून ने भी तरसाया बाबाजी
चिदम्बरम को देख के ऐसा लगता है
लुंगी में कीड़ा घुस आया बाबाजी
लोकराज में जनता का दिल घायल है
बलिदानों का क्या फल पाया बाबाजी
इन्टरनेट पे प्यार का ये परिणाम मिला
युवक ने अपना प्राण गंवाया बाबाजी
ये कैसा जीवन है, जिसमे चैन नहीं
'अलबेला' को रास न आया बाबाजी
__अलबेला खत्री
Comment
धन्यवाद रेखा जी......
आपके प्रशंसा-पत्र से थोड़ा सा चैन तो मिला ...........हा हा हा
__विनम्र आभार !
यह सच है आदरणीय सीमा जी कि मेरी बातचीत भी आमतौर पर ऐसी ही होती है रसपूर्ण और लयबद्ध, परन्तु आपने यह भांप लिया तो आपकी मेधा के समक्ष नत होना ही पड़ेगा
__आपकी स्नेहिल और ऊर्जस्वित टिप्पणी ने बहुत सुकून बख्शा है
___आपका आभार !
अलबेला जी
सम्मान्य अरुण जी...
हो सकता है मैं यों तो न भी लिखता परन्तु अब तो गली के पत्थर पर भी लिखनी ही पड़ेगी एक ग़ज़ल ताकि उसका भी अहिल्योद्धार हो जाये....हा हा हा
__बहरहाल आपकी सराहना ने बैटरी चार्ज कर दी...........आभार !
आदरणीय संदीप द्विवेदी जी.........
रचना आपको पसन्द आई......मेरा मन गदगद हो गया
आपकी स्नेहिल टिप्पणी ने निहाल कर दिया
________आभार !
चिदम्बरम को देख के ऐसा लगता है
लुंगी में कीड़ा घुस आया बाबाजी ............ क्या कहने बाबा जी के एक बार फिर ! आप तो गली में पड़े पत्थर पर भी गज़ल लिख दें ! इसे कहते है कवि की नज़र और लुंगी में कीड़ा ! हा हा हा हा !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका अरुण शर्मा अनंत जी...
आभार
आपका कोटि कोटि धन्यवाद संदीप जी.......
आते रहिये....
मिलते रहिये........
बाबाजी की ओर से सबसे पहले तो
आपके आने का शुक्रिया
फिर बांचने का शुक्रिया
फिर पसन्द करने का शुक्रिया
फिर टिप्पणी करने का शुक्रिया
सबसे ख़ास प्रोत्साहन देने का शुक्रिया ...........
___धन्यवाद राजेश कुमारी जी.........
ग़ज़ल पढनी शुरू की तो अचम्भा हुआ अलबेला और इतनी सीरियस गंभीर ग़ज़ल चौथे शेर पर आते ही पता चला हाँ ये अलबेला की ही ग़ज़ल हो सकती है गंभीर ग़ज़ल में भी चिदंबरम का कीड़ा घुसा दिया आदत से बाज नहीं आओगे बाबा जी ....बहरहाल मुद्दे की बात करते हैं बहुत बहुत कमाल की ग़ज़ल लिखी है बधाई
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