हज़ार जिगर को तेरे मिलने की चाहत हो
काम क्या बने जब न अपनी किस्मत हो
मैंने अक्सरहा रोटी और कपड़ों से पूछा है
ज़रूरतोंके दाफिएके लिए कितनी दौलतहो
क्यूँ अभीसे ही तू सूफियाना हुआ जाता है
ऐ दिल तुझे कोई ख्वाहिश कोई हसरत हो
हसरतों को लूटकर करते हो मिजाजपुरसी
दुआ है तुझेभी जूनूँ हो दर्द हो मुहब्बत हो
लो ऐलान करदिया कि आगए हैं बाज़ारमें
ज़िंदगी तवाइफ़ है मेरी, अबतो इनायत हो
ज़िंदगी भर रहे मसरूफ बेकारके कामों में
शायद साअतेमौत ज़िंदगी भरकी फुर्सत हो
इश्कका रोग बेइलाज है सदी-दर-सदी देखा
शायद नए ज़मानेमें इस मर्ज़की हिकमतहो
देखकर तेरा जल्वा साँसें बेदम हो जाती हैं
तेरे सामने अब किस रफ्ताहोशमें हर्कत हो
आओ ज़माने को बदल दें बज़रियाएअवाम
न सही जिस्म में पर इरादों में ताक़त हो
बर्गेगुल उड़ उड़के क़दमोंमें गिरके कहते थे
हम आपकी कदमपोशी करलेंजो इजाज़तहो
राज़ रहे हम अजनबियोंकी तरह अपनों में
इक फ़कीरने तजवीज़दी जज़बेमें ग़ुरबत हो
© राज़ नवादवी
भोपाल अपराह्न्न १५.५४, २५/०६/२०१२
Comment
धन्यवाद भाई अरुण एवं उमाशंकर जी जो आपने पढाने के ज़हमत उठाई!
- राज़ नवादवी
खूबसूरत हास्य गज़ल
शुक्रिया आपका राज!
मैंने अक्सरहा रोटी और कपड़ों से पूछा है
ज़रूरतोंके दाफिएके लिए कितनी दौलतहो
क्यूँ अभीसे ही तू सूफियाना हुआ जाता है
ऐ दिल तुझे कोई ख्वाहिश कोई हसरत हो
क्या बात है ...क्या बात है बहुत उम्दा ग़ज़ल
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