जिन्दगी है उलझी तेरे तुर्रा -ए-तर्रार की तरह
और इतनी साफ़ कि पढ़लो अखबार की तरह
एहसासेतवाफ़ेरोजोशब ये सोना- जागना अपना
भटकते हैं दर- दर तम्सीलके किरदारकी तरह
आना ही था तो आ जाता जैसे नींद रातों को
तू ज़िंदगीमें क्यूँ आया फ़स्लेबेइख्तेयारकी तरह
तुझसे बिछड़नाभी हो गोया कोई कारेखुदकुशी
और तुझसे इश्क निभानाभी वस्लेनारकी तरह
दर्दकी दास्ताँ रहगई खतोंकी तहरीर की तरह
प्यार हमारा टूट गया मुंहबोले इकरारकी तरह
हम सरनिगूँ थे तेरी यादमें पे सबने ये सोचा
तेरे कूचेसे हम क्यूँ निकले गुनहगार की तरह
हम चलपड़ें तेरे नक्शेपापे तू जिधर जाए लेक
रुक जाएँ जो तू रुक जाए, रहगुज़ार की तरह
राज़ अब कौन करे खिदमत अपनी क़ब्लेमर्ग
हम हो गए हैं इक लाइलाज आज़ार की तरह
© राज़ नवादवी
भोपाल, अपराह्न ०१.०१, २६/०६/२०१२
Comment
धन्यवाद भाई अरुण एवं उमाशंकर जी जो आपने पढाने के ज़हमत उठाई!
- राज़ नवादवी
खूबसूरत हास्य गज़ल
ज़हेकिस्मत जो आपको ये गज़ल पसंद आई राज!
पहले तो मतले ने ही दिल मोह लिया ...सभी शेर खूबसूरत हैं किस किस की तारीफ़ करूँ ...कम शब्दों में .....लाजबाब
आदाब अर्ज है जनाब!
हाय हाय हाय हाय
क्या कह दिया,.........
दर्दकी दास्ताँ रहगई खतोंकी तहरीर की तरह
प्यार हमारा टूट गया मुंहबोले इकरारकी तरह
____बहुत ख़ूब !
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