कुछ बातों की कोई इम्तेहा नहीं होती
होती है बस, कमोबेश वफ़ा नहीं होती
करो बहबूदीकी तमन्ना और भूलजाओ
जिसमें हो एहसान वो दुआ नहीं होती
माँ माँ होतीहै लहुलुहान होकर भी माँ
बच्चोंके लिए कभी आब्लापा नहींहोती
गरीबों केलिए ज़्यादा गिज़ा नहीं होती
अमीरों केलिए भूखकी दवा नहीं होती
अगर न होती भूल आदमोहव्वा से तो
रंगभरी और दुःखभरी दुनिया नहींहोती
काश कि औरत न होती रागिबेपैदाइश
और मर्दमें खल्ककी तमन्ना नहींहोती
ये दुन्या बस खालिस अक्सेखुदा होती
विलादतोक़ज़ा रज़ा-ओ-जज़ा नहीं होती
मैं नहीं होतातो तू नहीं होती, मिस्लन
आब नहीं होतातो फिर हवा नहीं होती
सबहैं मातहतेखातिरोअमल सिवाएखुदा
दुनिया जिसकी मर्जीके बिना नहींहोती
शाएस्तगी है मेरी जो इरशाद कहते हैं
आपजो फर्माएं हरबात बजा नहीं होती
अगर जो मांगो कुछ तो गुर्बा समझके
न हो खाक्सारी तो इल्तेजा नहीं होती
न करो रगबत कोई इस जहां में राज़
आए एकबार तो फिर दफा नहीं होती
© राज़ नवादवी
भोपाल, अपराह्न ०३.०८, २६/०६/२०१२
Comment
खूबसूरत हास्य गज़ल
बहुत खुशी हुई आपकी तहसीन पाके और हौसल अफजाई भी! बहुत बहुत शुक्रिया खत्री साहेब!
वह वाह जनाब राज नवादवी साहेब !
बहुत खूब ग़ज़ल..........
हर इक शे'र कमाल''''''''
निहाल कर दिया
खासकर यहाँ तो आपने मुझे लूट लिया :
शाएस्तगी है मेरी जो इरशाद कहते हैं
आपजो फर्माएं हरबात बजा नहीं होती
अगर जो मांगो कुछ तो गुर्बा समझके
न हो खाक्सारी तो इल्तेजा नहीं होती
____सादर
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