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उड़ने दो मुझे आस्मां में


इस कविता में मैंने आज के उस आम आदमी की व्यथा बताई  है , जो  बहुराष्ट्रीय कंपनी के चक्कर में  फसकर प्रकृति से जुदा हो गया है , आज की इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में , इस स्पर्धा  में हम खुद को प्रकृति से बहुत दूर कर गए हैं |पेश है आम आदमी की उस व्यथा को जो उसे मजबूर बनाकर आम आदमी बना देती है , कैसे इंसान इस भेड़ चाल में अपने सपनो का गला घुटता  पा रहा है!

कैद न करो मुझे पिंजरों में

उड़ने दो मुझे आस्मां  में 
छीनो न  मेरी आज़ादी मुझसे
जिंदा हैं, कई आबादी मुझसे 
हवाओं से करता हूँ गुफ्तगू 
मेघों को छूने की रखता हूँ आरज़ू 
उड़ता हूँ जहाँ दिल मेरा चाहे 
शाखों में पेड़ों की घर बना लेता हूँ
ठहरता  भी हूँ तो अलग अंदाज़ में 
राहें में  अपनी खुद बनाता हूँ 
किसी की राहों पर  चलता नहीं 
गाता हूँ में मन का गीत
चाहे हो न हो कोई मेरा मीत  
कभी वन तो कभी नभ 
कभी सरिता तो  कभी धरा
हर दिशा में मेरा बसेरा  
पीता हूँ मैं नदियों का पानी
गूंजती है मेरी मधुर ध्वनि 
उन गीरियों में , उन वनों में
न करो मुझे जुदा इस प्रकृति से
एहसान है इसका मेरे हर बीते पल पर 
मेरे पंख लालाहित हो रहे हैं उड़ने को
आज़ाद करदे मुझे स्वार्थी मनुष्य इस कैद से |
 
 
 
 

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Comment

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Comment by ganesh lohani on June 4, 2012 at 11:52am

रोहित जी बहुत खूब रचना है | एक ओर प्रकीर्ति का सुन्दर वर्णन दूसरी ओर नवयुवकों की ब्यथा | 

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:03pm
हवाओं से करता हूँ गुफ्तगू 
मेघों को छूने की रखता हूँ आरज़ू 
उड़ता हूँ जहाँ दिल मेरा चाहे 
शाखों में पेड़ों की घर बना लेता हूँ
ठहरता  भी हूँ तो अलग अंदाज़ में 
राहें में  अपनी खुद बनाता हूँ 

वाह रोहित जी बहुत बढ़िया बधाई स्वीकार करें

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 8:54pm

सम्मान्य  रोहित दुबे जी, बधाई
बहुत अच्छी रचना ...हालाँकि  थोड़ी और सजावट करते तो बेहतर था ..परन्तु आपकी बात में दम है  इसलिए all is well !

Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 5:56pm

Rohit ji ,badhiya rachna 

गाता हूँ में मन का गीत

चाहे हो न हो कोई मेरा मीत  
कभी वन तो कभी नभ 
कभी सरिता तो  कभी धराbadhai 
Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 3:40pm
उड़ने दो मुझे आस्मां में
छीनो न मेरी आज़ादी मुझसे
जिंदा हैं, कई आबादी मुझसे
हवाओं से करता हूँ गुफ्तगू
वाह मित्र ! कमाल का लिखा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2012 at 12:10pm

आसमानों में उड़ने वाले तूफानों से कहाँ डरते हैं ....बहुत सुन्दर जज्बा लिए हुए आपकी रचना एक सकारात्मक सोच को दर्शाती ...बहुत अच्छी

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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