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कुछ पल मेरी छावं में बैठो तो सुनाऊं
हाँ मैं ही वो अभागा पीपल का दरख्त हूँ
जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं
दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ
कि जड़ हो चुका हूँ !
अब किसी की व्यथा से
विह्वल नहीं होता
मेरी आँखों में अश्कों का
समुंदर सूख चुका है |
बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त
जब कोई वीर सावरकर
मुझसे लिपट कर रोता था
और विषण मैं, उसके अन्दर
सहन शक्ति की उर्जा
का संचार करता,
अपने पंखों से उसके
अश्रु और और स्वेद कण
जिनमे उसकी श्रान्ति और
उस पर हुई बर्बरता का अक्स
साफ़ दिखाई देता ,उनको सुखाता था |
उन दिनों मैं युवा था
और अपने देश कि मिटटी के लिए
वफादार था
मैं हर उस बुल -बुल से
इश्क करता था
जो मेरी भुजा पर बैठ कर
देश भक्ति के गीत गाती थी |
पर वही भुजा अगले दिन
काट दी जाती थी
और मैं घंटों अश्रु बहाता था |
जब भी मेरे किसी वीर जवान कि
दर्द भरी चीख मेरे कर्ण पटल पर पड़ती
मैं थर्रा उठता और न जाने
कितने मेरे अजीज पत्ते
मेरे बदन से कूद कर आत्म हत्या कर लेते थे |
और मेरे हर्दय से दर्द का सैलाब
उमड़ पड़ता |
आये दिन मेरे ही नीचे से
मेरे वीरों की अमर आत्माओं
को घसीट कर ले जाते थे
और मैं विदीर्ण हर्दय से मौन
मौन होकर शीश झुकाकर
उनके चरणों में नमन करता
और शपथ खाता कि
भविष्य में लिखे जाने वाले
इतिहास में ,एक प्रत्यक्ष दर्शी के रूप में
गवाही दूंगा और आने वाली पीढ़ी को
अपने वीरों की
देश भक्ति की गाथा सुनाकर
प्रेरणा का संचार करूँगा
आज भी मेरा पोर -पोर
इस देश को समर्पित है
इसी लिए आज भी प्रतिज्ञा बध
जस का तस खड़ा हूँ ||
(यह पीपल का पेड़ सेल्लुलर जेल में आज भी उसी तरह खड़ा है वहां जाकर अपने वीरों की कुर्बानी की गाथा सुनकर जो भाव मेरे मन में उभरे उनको इस रूप में आप से सांझा कर रही हूँ )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 2:06pm

Aasheesh ji hardik dhanyavaad.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 2:06pm

jee haan Meenu ji bhagvaan kare sabhi ko vo saubhagya praapt ho ye rachna maine us ped se milne ke baad agle hi din likhi thi har deshbhakt ko vahan (cellular/kala pani jail jana chahiye bahut prerna milti hai.

Comment by आशीष यादव on April 3, 2012 at 1:34pm

achchhi rachna par badhai

Comment by minu jha on April 3, 2012 at 1:18pm

बहुत ही अच्छी तरह प्रस्तुत किया है आपने उस पेङ की

व्यथा कथा को,उस पेङ के दर्शन का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है

आभार उसे इतने अच्छे शब्द देने के लिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 12:23pm

haardik aabhar Jawhar lal ji.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 12:02pm
पीपल के पत्ते गोल गोल, कुछ कहते रहते डोल डोल. 

बिलकुल यही कहता यदि वह वृक्ष बोल पाता. बहुत सुन्दरता से अपने मनोभाव को शब्द दिए हैं आपने. बधाई.

 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2012 at 7:16am

bahut bahut aabhar Ashok Kumar ji.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 1, 2012 at 10:31pm

बिलकुल यही कहता यदि वह वृक्ष बोल पाता. बहुत सुन्दरता से अपने मनोभाव को शब्द दिए हैं आपने. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 1, 2012 at 1:23pm

प्रदीप कुमार जी आपकी प्रतिक्रिया हार्दिक प्रसन्नता हुई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 1, 2012 at 1:19pm

हार्दिक आभार प्राची जी आपने मेरी रचना का मूल तथ्य दिल से महसूस किया.

कृपया ध्यान दे...

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