For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लुटा के सब कुछ चुपके से तेरी बज्म में हैं आये 
 बच गया था जो राख में  तेरी अंजुमन में हैं लाये 
महका करते थे जो कहीं और क्यों आज यहाँ हैं आये 
मर चुका जब अहसास गुलजार हो चमन अब  न भाये 
जो खुद हो वेबफा उसे अब  वफ़ा  क्यों भाये 
मरने पे आशिक के लिए कफ़न  क्यों  लाये  
चाहत के किस्से  उसके मेरे अब पुराने हो गए 
थी बुलंद जो इमारतें अब खंडहर मकान हो गए 
उन्हें पास बुलाने की चाहत में कितने प्रेम गीत गाये
कटती  रही जिंदगी यूँ ही तनहा वो गुलशन में न आये 
उनकी याद में रो रो यों "प्रदीप " बर्बाद हो गये
मेरा न सही औरों के चमन तो गुलजार हो गये 

Views: 392

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2012 at 3:23pm

aadarniya bhrmar ji, saadar abhivadan.

yun hi likha tha aap ko pasand aaya, dhanyavaad.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 8, 2012 at 12:19am

उन्हें पास बुलाने की चाहत में कितने प्रेम गीत गाये

कटती  रही जिंदगी यूँ ही तनहा वो गुलशन में न आये 
उनकी याद में रो रो यों "प्रदीप " बर्बाद हो गये
मेरा न सही औरों के चमन तो गुलजार हो गये 
आदरणीय कुशवाहा जी ..मर्म भरा सन्देश ....अपने लिए जिए तो क्या जिए तू जी ए दिल ज़माने के लिए ..आप की सब मुरादें पूर्ण हों 
जय श्री राधे 
भ्रमर ५  
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 3, 2012 at 2:37pm

aadarniya rajesh kumari, mahodaya ji, sadar abhivadan, lagta hai aapne meri pukar sun li hai. laga ki sher hai. honsla afjayee ke liye hardik abhar.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 2:02pm

जो खुद हो वेबफा उसे अब  वफ़ा  क्यों भाये 

मरने पे आशिक के लिए कफ़न  क्यों  लाये  
चाहत के किस्से  उसके मेरे अब पुराने हो गए 
थी बुलंद जो इमारतें अब खंडहर मकान हो गए ..ye sher to lajabaab hain
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2012 at 11:15pm

ADARNIYA ASHOK JI, SADAR ABHIVADAN.

AAPNE SARAHA . HIMMAT BADHI. DHANYVAD. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 31, 2012 at 7:04pm

  चाहत के किस्से  उसके मेरे अब पुराने हो गए
   थी बुलंद जो इमारतें अब खंडहर मकान हो गए
वाह! क्या बात है प्रदीप जी सुन्दर रचना बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service