For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिल्ली के गले में घंटी बांधना हर समय विशेष में कठिन काम रहा है

गीत और ग़ज़ल ऐसी विधाएं हैं जो प्रत्येक साहित्य प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं | चाहे वह मजदूर वर्ग हो या उच्च पदस्थ अधिकारी वर्ग, सभी के ह्रदय में एक कवि छुपा होता है | हर काल में गीतकार और ग़ज़लकार होने को एक आम आदमी से श्रेष्ठ और संवेदनशील होने का पर्याय मन गया है ऐसे में प्रत्येक साहित्य प्रेमी को प्रबल अभिलाषा होती है कि वह सृजनात्मकता को अपने जीवन में स्थान दे सके और समाज उसे गीतकार ग़ज़लकार के रूप में मान दे इस सकारात्मक सोच के साथ अधिकतर लोग खूब अध्ययन करने के पश्चात और शिल्पगत बारीकियों को समझ कर साहित्य की सेवा में तन मन से रत हैं और कविता ग़ज़ल के मूल तत्वों को आत्मसात करके रचनाशील हैं ऐसे रचनाकारों को शत् शत् नमन हैं
.
मगर आज का मुद्दा वो लोग हैं जो शिल्प को सिरे से नकार देते हैं या सीखने अध्ययन करने में कोताही करते हैं और कुछ भी ऐसा रचते रहते हैं जो शिल्प के आधार पर जानकारों के द्वारा घटिया की श्रेणी में ही रखा जा सकता है ऐसे लोगों में भी दो वर्ग होते हैं एक तो वह, जो साधारण वर्ग से ताल्लुक रखता है और दूसरा उच्च पदस्थ अधिकारी वर्ग | आजकल खूब देखने में आ रहा है कि हर शहर में कुछ साहित्य प्रेमी पत्रकार और उच्च पदस्थ अधिकारी खुद को गीतकार ग़ज़लकार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं और अपने संपर्क और पहचान के बल पर या पैसा दे कर अपनी ४- ६ गीत ग़ज़ल की किताब छपवा लेते हैं और कवि ग़ज़लकार बन बैठते हैं मगर यदि समीक्षा की जाए कि उनकी किताबों में क्या होता है तो सच हर पारखी को पता है, यही लोग आगे चल कर उन लोगों का हक छीनते हैं जो सच्चे अर्थों में रचनाकार हैं और सम्मान के सच्चे हकदार भी साधारण वर्ग से ताल्लुक रखने वाले घटिया रचनाकार को तो वरिष्ठजन नकार देते हैं और भाव नहीं देते और धीरे धीरे वह गुमनाम हो जाता है मगर उच्च पदस्थ वर्ग के साथ कुछ वरिष्ठजन दूसरा ही व्यवहार करते हैं , शर्म की बात है कि ऐसे उच्च पदस्थ अधिकारी महोदय की तथाकथित रचनाशीलता का समर्थन कुछ वरिष्ठ गीतकार और ग़ज़लकार खूब करते हैं, जहाँ ऐसे वरिष्ठ शाईर, नव आगंतुकों मेहनती और अच्छा लिखने वालों को अरूज के डंडे से पीटते हैं व उनके प्रयासों में सप्रयास मीनमेख निकालते हैं वहीं श्रेष्ठवर दूसरी ओर उच्च पदस्थ अधिकारीयों के लिए आजाद ग़ज़ल नामक विधा को पैदा करने को तत्पर दीखते हैं |

.
यहाँ बड़ा प्रश्न उठता है कि अगर छंद अरूज के नियमों का अध्ययन और अभ्यास किन्ही महोदय के लिए दुष्कर कार्य है तो अपनी रचना को आजाद नज़्म क्यों नहीं कहते ? मगर इस प्रश्न को इन उच्च अधिकारीयों से पूछने का साहस कौन करे !बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?

.
कुछ संतोष की बात है कि सप्रयास इसी तरह आजाद दोहा, आजाद चौपाई, आजाद सोरठा आदि नहीं लिखा जा रहा है या फिर क्या पता कि किसी महान हस्ती ने इन पर भी कलम चलाया हो ऐसे तथाकथित रचनाकारों से सबसे बड़ा नुक्सान उन रचनाकारों को हो रहा है जो सच्चे माइनों में साहित्य की सेवा कर रहे हैं, मंचों पर उच्च पदस्थों को सम्मानित किया जाता है और असली हकदार किनारे खड़ा ताली बजा कर रह जाता है यहाँ तक की कुछ  संस्थाएं अपने लाभ के लिए ऐसे नकली ग़ज़लकारों गीतकारों से अध्यक्षता भी करवा देती है. अपवाद स्वरूप ऐसे वरिष्ठ पदाधिकारी भी मिलते हैं जो रचनाशीलता में तन मन से समर्पित हैं मगर दुर्भाग्य है कि हाजारों लोगों में ऐसे लोगों को हम उँगलियों में गिन सकते हैं सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे तथाकथित रचनाकारों से मंच और साहित्य को कैसे बचाया जाए ? यदि वरिष्ठ रचनाकार सामान्य वर्ग के घटिया साहित्य को नकार देते हैं तो उच्च पदस्थ घटिया रचनाकार को क्यों स्वीकार रहे हैं ? ऐसे वरिष्ठजन व्यग्तिगत लाभ के लिए साहित्य का नुक्सान करने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ?


सोचिये ...

Views: 1253

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on March 31, 2012 at 12:01am

आदरणीय प्रदीप जी,

क्षमा करें,
छोटे मुंह बड़ी बात हो रही है मगर इसे सकारात्मक रवैया नहीं कहा जा सकता है, मंच किसी को सही और शिल्पबद्ध लिखने को प्रेरित कर सकता है, मंच को छोड़ कर जाने का निर्देश कैसे दिया जा सकता है ?

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 30, 2012 at 11:35pm

vakya ko is prakar liya jaye to kya thik rahega.

 मंच की द्रष्टि में स्यूडो कवि या कहानीकार हैं उन्हें चिन्हित करके मेल द्वारा उन्हें मंच से विदा लेने हेतु कह दिया जाये. 

Comment by वीनस केसरी on March 30, 2012 at 11:21pm

प्रदीप सर आपकी सभी बातें शिरोधार्य हैं मगर आप इस बात पर पुनः गौर करें ...

इस मंच पर जो सीख रहे हैं या मंच की द्रष्टि में स्यूडो कवि या कहानीकार हैं उन्हें चिन्हित करके सिखने तक सीमित  किया जाये. उनकी रचनाओं को पोस्ट न किया जाये. मेल द्वारा उन्हें मंच से विदा लेने हेतु कह दिया जाये.

ऐसा कैसे कर सकते हैं ?
यह तो इस मंच की सीखने सिखाने की परंपरा का विरोधाभास हैं ...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 30, 2012 at 11:06pm
आदरणीय केसरी  जी, सादर अभिवादन. 
मैंने आपकी बात का का कोई गलत अर्थ नहीं निकाला. ५९ वर्ष की आयु में बहुत कुछ देखा , समझा जाना है . आपकी बात बिलकुल सत्य है. जैसे लोगों का आपने जिक्र किया है उनकी पब्लिसिटी कैसे होती हैं आँखों देखी है. ओ बी ओ तो शिक्षण संसथान है. मैं इसका दिल से सम्मान करता हूँ.  अभी एक प्रकरण में दूसरे लेखक   की रचना पोस्ट हुई. यह भी मेरे ध्यान में है. 
मैंने मात्र एक सुझाव रखा था. जो लाभकर ही है. दुराशय कदापि नहीं. कही और तो हम लोग कुछ कर नहीं सकते परन्तु अपने मंच की गरिमा तो बनाये रखनी  है. कोई विवाद नहीं है. कृपया अन्यथा  न लें मुझे दुःख होगा. शायद मैं अपनी बात कह नहीं पाया. खेद है. 
धन्यवाद .
Comment by वीनस केसरी on March 30, 2012 at 10:27pm

आदरणीय प्रदीप जी,
आपका कमेन्ट पढ़ा और मुझे समझ आया कि आपने मेरी पोस्ट को ओपन बुक्स आनलाइन से संदर्भित करके ग्रहण किया है,, आपके कमेन्ट के ये अंश मेरी बात की पुष्टि करते हैं ,,,


इस मंच पर जो सीख रहे हैं
पोस्ट न किया जाये

पता  नहीं आपने यह आशय क्यों निकाला परन्तु मैं आपसे स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मेरा लेख उन मंचों से लिए है जो कार्यक्रम हर शहर की संस्थाएं भौतिक रूप से आयोजित करवाती हैं
आपसे निवेदन है कि पोस्ट को पुनः उन सन्दर्भों से पढ़ें

तथाकथित रचनाकारों से सबसे बड़ा नुक्सान उन रचनाकारों को हो रहा है जो सच्चे माइनों में साहित्य की सेवा कर रहे हैं, मंचों पर उच्च पदस्थों को सम्मानित किया जाता है और असली हकदार किनारे खड़ा ताली बजा कर रह जाता है यहाँ तक की कुछ  संस्थाएं अपने लाभ के लिए ऐसे नकली ग़ज़लकारों गीतकारों से अध्यक्षता भी करवा देती है

क्या यह बात किसी आनलाइन मंच के लिए कही जा सकती है ?
बल्कि देखा जाये तो ओ बी ओ तो समरसता का प्रतीक है यहाँ सदस्यों में धर्म, जाति और धन का वर्गीकरण नहीं होता
आशा करता हूँ अब आप पर बात स्पष्ट हो गई होगी  

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 30, 2012 at 10:16pm
आदरणीय केसरी  जी, सादर अभिवादन. 
खूबसूरती के साथ आपने वस्तु स्थिति से अवगत कराया है . एक सराहनीय कदम है. ऐसी स्थिति में अब यह अत्यंत आवश्यक है की अन्य स्थलों पर तो कुछ नहीं किया जा सकता है परन्तु  इस मंच पर जो सीख रहे हैं या मंच की द्रष्टि में स्यूडो कवि या कहानीकार हैं उन्हें चिन्हित करके सिखने तक सीमित  किया जाये. उनकी रचनाओं को पोस्ट न किया जाये. मेल द्वारा उन्हें मंच से विदा लेने हेतु कह दिया जाये. 
धन्यवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. लक्ष्मण जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service