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बहुत खूबसूरत गज़ल विवेक जी सारे ही शेर बहुत इत्मीनान से रचे हुये....... खास तौर से दो अशआर की बात करूंगी
उम्मीदों का इक जुगनू
शब भर जलता बुझता है-............ बहुत सुन्दर बात .....बस एक इस जुगनू के सहारे लंबे और मुश्किल सफर भी कट ..............................................जाते हैं
मंजिल बैठी दूर कहीं
मीलों लम्बा रस्ता है-............वाह !!!!
दिली मुबारकबाद क़ुबूल करिये
ख़्वाहिश जैसे रोटी है
दिल, मुफ़लिस का बेटा है-
किसकी खातिर रोता तू
कौन यहाँ पर किसका है-
बागी जी,
यह ग़ज़ल फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर लिखी गयी है
२२२२ २२२२ २२२२
यह हिन्दी छ्न्द है जिसको ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में उस्ताद शायरों ने इस छंद पर ग़ज़ल कही है
अब आईये इस छंद में मिलाने वाली छूट की बात कर लें
* इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है
आप इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे
२११२२ = २२२२
१२१२२ = २२२२
ध्यान रहे कि जो दो लघु हों वो स्वतंत्र हों
याद रखे कि ग़ज़ल में कब,, तक आदि किसी वस्ल से दीर्घ नहीं होते वरन यह शाशवत दीर्घ होते हैं
कब, तक को २२ के अतिरिक्त किसी और वज्न में बाँधा ही नहीं जा सकता,, इसे १२१ करना असंभव है
(आपने तिलक सर से यह ही पूछा था इस लिए उन्होंने मना किया था)
अब देखिये
दीप जलाती = २१ ,, १२२ इसमें प और ज स्वतंत्र लघु हैं इसलिए (केवल इस बह्र में) इसे दीर्घ माना जाता है
और २१,, १२२ को २२२२ गिना जाता है,,,
इस तरह ही
यहाँ वहाँ = १२१२ को भी मात्रा गिन कर २२२ किया जाता है
मेरा एक शेर देखें
गायब है चालीस खरब
२२२२,,, २१+१२
सवा अरब की कंट्री का
१२१२२ २२२ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो सारा जुगाड फेल :)))
इस फेलियर से बचने के लिए इस बह्र में कुछ नियम हैं कि कहाँ कहाँ १+१ = २ किया जाए जिससे लय भंग न हो और मात्रा को सुनिश्चित करने का भी कुछ नियम है जिससे लय और सुंदरता से बनी रहे
उस पर चर्चा फिर कभी .....
यदि इस बह्र की और बारीकियां समझनी हैं तो सुप्रसिद्ध शायर विज्ञान व्रत जी को कविता कोष में पढ़े उनकी अधिकतर ग़ज़ल इस बह्र पर ही हैं और वहाँ आपको सुन्दर लय के साथ साथ ये सारे जुगाड भी मिलेंगे
अंत में इस बह्र की सबसे मशहूर गज़ल के दो शेर लिखता हूँ
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है
किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीश महल में इक इक चेहरा अपना लगता है
(इस ग़ज़ल के एक मिसरे पर ओ बी ओ तरही मुशायरा भी हो चूका है ) वहाँ मैंने एक मजाहिया शेर कहने का प्रयास किया था जो कुछ यूं था कि,
मंजनू पिंजरे में बैठा कर शह् र घुमाया फिर
मुझसे थानेदार ने पूछा कैसा लगता है ,,,,,,,,:)))))))))
इन नियमों से जब आप इस ग़ज़ल की तख्तीय करेंगे तो ग़ज़ल को निर्दोष पायेंगे
कहीं कुछ गलत कहा हो तो मुझे जरूर बताने की कृपा करें
मैं भी सीख ही रहा हूँ
सादर
- वीरेंद्र जैन जी- बहुत-बहुत धन्यवाद वीरेंद्र जी. :)
- इमरान खान जी- जर्रे को नवाजने के लिए शुक्रिया. :)
वाह वाह विवेक जी! बहुत खूबसूरत, इतने कम अलफ़ाज़ मैं गहरे भावों को बहर के साथ पिरोना बहुत ही खूबी की बात है...मेरी पुर्खुलूस मुबारकबाद आपको..
विवेक जी , बहुत बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन ग़ज़ल पर , हर एक शेर में एक गहरी सोच ...बहुत ही बढ़िया ...बधाई..
- वीनस जी
इन अश'आर को मैं केवल 'अपना' कह दूँ तो ग़ज़ल के साथ ज्यादती होगी. इनके लिए लगातार हिम्मत देने का काम (वो भी मुझ जैसे आलसी को.. :P) तो आपने किया है.
मुझे वह रात हमेशा याद रहेगी जब मेरे आलसपने से ऊबकर, 'ग़ज़ल के एक जमींदार' ने मुझ 'फ़कीर' से 'एक शे'र' की भीख माँगी थी. उस रात के लिए शर्मिन्दा भी हूँ और शुक्रगुज़ार भी, वरना ये अश'आर अब तलक किसी पोटली में पड़े रहते.
सीखना एक सतत, एक मुसलसल प्रक्रिया है. इसके लिए एक लम्हा भी जियादा होता है और उम्र भर भी कम.. मैं भी इसी कोशिश में हूँ कि सीखता रहूँ. बस आप जैसे मित्रों और गुणी लोगों का साथ बना रहे.
साभार
- अभिनव जी- अश'आर में निहित दर्शन को तवज्जो देने के लिए और ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया.
- सिया जी- Thank you Ma'am for your kind appriciation.
वीनस भाई, मुझे ध्यान नहीं आ रहा उस चर्चा का, मैं बहुत confuse हूँ , आप थोड़ा स्पष्ट कीजिये की पडोसी शब्दों के २ लघु वर्ण को मिलाकर क्या एक दीर्घ बनाया जा सकता है, मैंने तिलक सर से भी पूछा था, उनका कहना है की नहीं ऐसा नहीं होता |
जी तिलक सर, आप बिलकुल दुरुस्त फरमाते है, जब भी हम बहर को गुनगुना कर उसपर आधारित शे'र पढ़ते है, अपने आप बहुत कुछ समझ में आने लगता है, जहाँ भी कोई वर्ण जबरदस्ती गिराया गया हो वो खटकने लगता है और खुद एहसास होने लगता है कि यहाँ कही ना कही बहर की समस्या है |
मुझे एक बात हमेशा तंग करती है .... क्या पड़ोसी शब्दों से एक-एक लेकर दो पढ़ी जा सकती है |
उदाहरण -- कब तक
यहाँ सीधा सीधा ११ ११ या २२ दिखता है किन्तु कुछ साथी कहते है कि इसे क (ब त) क = १(२)१ पढ़ सकते है |
क्या ऐसा हो सकता है ?
कब तक को क (ब त) क = १(२)१ लेना ग़ल़त होगा यह केवल 22 ही हो सकता है। 11 के संबंध में तो अतिरिक्त सावधानी की ज़रूरत होती है। अगर 22112 में कुछ कहना है तो इसे 221 12 में लेना पड़ेगा। अन्यथा 2222 हो जायेगा।
उम्मीदों का इक जुगनू
शब भर जलता बुझता है
मंजिल बैठी दूर कहीं
मीलों लम्बा रस्ता है
मित्र विवेक जी,
यह वो शेर हैं जो एक शायर लिखने का ख़्वाब देखता है,, छोटी बह्र में इतनी गहरी बात कह देना हर किसी के बस की बात नहीं है,, किसी ग़ज़ल के जानकार से बताईये मत की आपकी यह पहली ग़ज़ल है और बेबाक सुनाईये और फिर देखिये क्या कमाल होता है ..
आजमा कर देखिये
@ गणेश जी,
आपसे इस बह्र को लेकर मैं पहले भी चर्चा कर चुका हूँ जब मैंने कुछ सामयिक से शेर ओ बी ओ पर पोस्ट किये थे तो आपने इस विषय में चर्चा की थीhttp://openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:86633
विवेक जी की ग़ज़ल के लिए यही कहूँगा की पहली कोशिश ऐसी है तो आने वाले दिन विवेक जी के हैं
ग़ज़ल बाबह्र है,, कुछ एक शेर और अच्छे हो सकते थे
इस शेर में तकाबुले रदीफ का दोष है
ख़्वाहिश जैसे रोटी है,
दिल, मुफ़लिस का बेटा है
इसके अतिरिक्त ग़ज़ल दोष मुक्त है
मतला के लिए विशेष दाद देता हूँ
सादर
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