For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुबह-शाम - वह रोज दिखता । देह पर उसके गन्दे फटे चीथड़े जैसे कपड़े होते । कन्धे से एक झोला नुमा लटक रहा होता । शहर की मुख्य सड़क के बड़े चौराहे पर, जहाँ से सबसे अधिक गाड़ियाँ गुजरतीं अल्ल-सुबह से आधी रात तक वह वहीं दिखता । जैसे ही सिग्नल की बत्ती लाल होती, अपनी इकलौती टांग पर कूद-कूद कर हर रुकने वाली गाड़ी की खिड़की पर हाथ से ठोकता, दयनीय भाव से गिड़गिड़ाता, पेट पर हाथ फिराता और भूखा होने का भाव जताता हुआ गाड़ी वालों से पैसे मांगता । उसकी पसन्द लेकिन बड़ी सेलेक्टेड होती । उसके 'आर्डर आफ प्रेफरेन्स' में छोटी गाड़ियाँ सबसे नीचे होतीं । बड़ी गाड़ियाँ दूसरे नम्बर पर और पहले नम्बर पर होती बड़ी और चमचमाती सी विदेशी गाड़ी जिसमें बैठे होते विदेशी । दूसरे नम्बर पर 'शोफर ड्रिवेन कारें' जिसमें पीछे की सीट पर बैठे होते बड़े सेठ ।

'बिजी आवर्स' उसके 'बिजनस' का 'टेम' होता । देसी सेठ उसे १ या २ रुपये देते पर विदेशी तो कम से कम १० का नोट ही थमाते । फिर सिग्नल हरा होते ही सड़क के किनारे बैठ जाता । वहाँ किसी दूसरे माँगने वाले को वह नहीं आने देता । अनेकों बार दिखा था, दूसरे भिखारी से लड़ता हुआ - गालियाँ देता हुआ और उन्हें वहाँ से भगाता हुआ । ऐसे ही चल रही थी उसकी जिन्दगी और समय गुजर रहा था ।

फिर एक दिन वहाँ से गुजरते हुए जब सिग्नल लाल होने पर गाड़ी रोकने का उपक्रम कर रही थी अचानक एक शोर सा सुना - "मार दिया - मार दिया"। सिग्नल पर रुकने वाली सभी गाड़ी वाले बाहर निकल पड़े - पता करने आगे देखा - वो सड़क पर पडा़ था - सिग्नल लाल होने पर भी चौराहा पार कर जाने की जल्दी में कोई गाड़ी वाला मार गया था । पहले वह सड़क पर गिरा फिर गाड़ी उसे कुचलती हुई चली गई सड़क पर वो पड़ा था - कुचला हुआ - पास ही उसका झोला पड़ा था - झोले से निकल कर कुछ नोट बिखर गए थे ।

अगले दिन अखबार में हेडिंग पढ़ा - "लखपति भिखारी" जिसके झोले से ढाई लाख रुपये निकले ।

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on August 20, 2010 at 10:46am
Bagi ji, Satish ji, Vivek ji, Rana Pratap ji aur Ritesh ji, aap sab ka bahut bahut dhanyawaad mera manobal badhane ke liye..
Comment by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:35pm
aapne ek sath metro ki kuchh mahatwapurn pahaluo ko bade achhe dhang se dikhaya hai iss kahani me..
Comment by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:32pm
achhi kahani hai neelam ji..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 19, 2010 at 9:03pm
बड़ी गाड़ियाँ दूसरे नम्बर पर और पहले नम्बर पर होती बड़ी और चमचमाती सी विदेशी गाड़ी जिसमें बैठे होते विदेशी । दूसरे नम्बर पर 'शोफर ड्रिवेन कारें' जिसमें पीछे की सीट पर बैठे होते बड़े सेठ ।

उपरोक्त पंक्तियाँ एक भिखारी की मनोदशा का सुन्दर चित्रण करती है| यह स्थिति केवल एक भिखारी मात्र की ही नहीं है बल्कि यह पंक्तियाँ तो पूरे समुदाय का प्रतिधिनित्व करती है| बड़ी चीज़ के पीछे भागने की मानसिकता हम सब में है|
लघु कथा सुन्दर है और प्रासंगिक भी|
Comment by विवेक मिश्र on August 19, 2010 at 2:25pm
अच्छी लघुकथा है नीलम जी. न अब लोग पहले से रहे और न ही भिखारी. लोगों का दिल जितना ग़रीब होता जा रहा है, भिखारी उतने ही अमीर..
Comment by satish mapatpuri on August 19, 2010 at 11:11am
बहुत -बहुत धन्यवाद नीलम जी, बड़ा ही प्रेरक प्रसंग है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2010 at 10:06pm
बहुत ही प्रेरक प्रसंग है नीलम दीदी, पैसा ऐसे ही शोभा की वस्तु बन कर रह जाती है और जाने वाले चले जाते है, किसी ने कहा भी है की कफ़न मे थैलिया नहीं होती, बहुत ही रुचिकर प्रस्तुति, धन्यवाद,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
9 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service