मैं कौन हूँ
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका
भीड़ में दबा कुचला व्यथित मानव
दड़बे में बंद फड़फड़ाता परिंदा
या पेट भरने के लिए मांस नोचता चील
मैं कौन हूँ ?
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका
हँसता हुआ बेफ़िक्र शिशु
अख्कड़ गली में दौड़ता किशोर
बलिष्ठ जवानी जिसने की दुःख न देखा हो
या चिंता के बोझ से दबा गृहस्थ
जो रात के खाने की चिंता में
गला जा रहा है
अथवा
अपने जीर्ण-शीर्ण स्थूल शरीर
का भार बेंत पर टिकाया हुआ वृद्ध
जो की निष्कासित कर दिया गया है
न्यू जेनरेशन के हाथों
जिसका सपना बुना था उसने ही
मन्नतें मांग-मांग कर
उपवास कर-कर के
जिस बृक्ष को लगाया था उसने
अपने खून पसीने से सिंच कर
आज जब उसके छाँव में
बैठने का वक्त आया
तो बृक्ष में पत्ते नहीं
उसके बचे हुए खून को चूसने वाले
कांटे पनप रहे हैं।
मैं कौन हूँ ?
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका
गली के नुक्कड़ पर मांगता
अन्न का दाना भूख मिटाने के लिए
असहाय बीमार खांसता
जीने के डर से मरने के लिए
या बाज़ार में भागता शिशु रोटी ले के
अपने छोटी बहन के भूख मिटाने के लिए
वो तो खुद आठ वर्षीय समझदार है
भूख सह भी लेता
पर सह नहीं सका सहोदर का दर्द
क्योंकि अनाथ का माँ-बाप तो भेट चढ़ गये
राक्षशी भूख के
अब लगाए फिरता है अपने हृदय से
उनके हृदय के टुकड़े को।
मैं कौन हूँ ?
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका
अनपढ़ सिर खुजलाता
देखकर दुनिया की चकाचौंध
कुएँ के मेंढक सा
जिसने की बाहर कभी
सूर्य की रोशनी न देखी हो
या ऊछलता कूदता अपनी विद्वता पर
फूला हुआ अधकचड़ा
न पक्का न कच्चा
अल्प शिक्षित
ढोल सा खाली बड़बड़ाता गपोड़ी
मैं कौन हूँ ?
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका ..........
(मौलीक व अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक धन्यवाद भाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी और भाई आदरणीय Samar Kabeer जी, आप का मार्गदर्शन इसी तरह से सदैव मिलता रहे।
आ. भाई मनु जी, अभिवादन। अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
भाई समर जी की बात का संज्ञान लें।
जनाब 'मनु' जी आदाब , अच्छी रचना हुई है, बधाई सवीकार करें I
टंकण त्रुटियाँ देख लें I
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