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मैं धुँध को नहीं चीर सका तो क्या
आगे बढ़ने कि कोशिश तो की
कुछ कदम आगे मैं बढ़ा
सूरज भी कुछ कदम आगे की
मेरे सिर पर विजय मुकुट था
घटी चादर ज्योँ ही धुँध की


यह सोच गर मैं घर में रहता
धुँध बहुत हैं छायी
चलो रजाई तान कर सोएँ
बहुत सुहाबना मौसम हैं भाई
मेरे भाग्य की कलियाँ बंद होती
सूरज क्योंकर साथ मेरा देता
किसी अन्धेरे कोठरी में
मेरा नाम भी गुम गया होता


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on May 21, 2014 at 9:40am

आदरणीय Saurabh Pandey जी हार्दिक धन्यवाद....

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 7:47pm

सार्थक प्रयास के लिए शुभकामनाएँ.

सतत अभ्यास करें.

शुभ-शुभ

Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on May 8, 2014 at 9:42am

  हार्दिक धन्यवाद   रमेश कुमार चौहान जी ....

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 3:02pm


सफल प्रयास के बधाई आदरणीय

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