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गीत -७ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
*
तितली फूल हवा  को  भी  है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला  क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की अड़ बैठी बरसात।
लुकाछिपी में चाँद सुने ना, मन की कोई बात।।
नदिया बिफरी  राह  रोकती  नाव  न है पतवार।
कंटक पथ में क्या कम हैं जो आयी निष्ठुर शीत।।
*
किसने देखी फटी बिवाई किसने मन की पीर।
जो भी आया उपहारों  को  पाया बड़ा अधीर।।
कौन सुझाये  समझ  सलौनी  टूटे  मन की गाँठ।
अर्थ जनित सब रिश्ते नाते अर्थ जनित हर प्रीत।।
*******
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2022 at 7:14pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 28, 2022 at 6:56pm

बहुत सुन्दर सरस गीत है आदरणीय धामी जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 6:08am

आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। आपको गीत भाया, लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 6:06am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 27, 2022 at 8:56pm
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई सर
Comment by Samar kabeer on December 25, 2022 at 6:48pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

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