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बाल दिवस (दोहे ) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

दोहे बाल दिवस पर
***
लेता फिर सुधि कौन है, दिवस मना हर साल।
वन्चित  बच्चे  जानते,  बस  बच्चों  का  हाल।।
*
कितने बच्चे चोरते, निसिदिन शातिर चोर।
लेकिन मचता है नहीं, तनिक देश में शोर।।
*
भूखा बच्चा रोकता, अनजाने की राह।
बासी रोटी फेंक मत, तेरे पास अथाह।।
*
नेता करते देह का, धन के बल आखेट।
कितने बच्चे सो रहे, निसदिन भूखे पेट।।
*
बच्चे हर धनवान  के, हैं  सुख  से भरपूर।
निर्धन के सुख खोजने, बन जाते मजदूर।।
*
हरती दिनभर की थकन, बच्चों की मुस्कान।
कहते हैं  यूँ  सन्त  जन, वह  भी  है भगवान।।
*
कूड़े में कुछ  ढूँढते, बन्चित  बच्चे मौन।
है उन के इस हाल का, उत्तरदायी कौन।।
*
भारी बस्ता पीठ पर, कह सुख का आधार।
सिर पर सब ने टाँग दी,  बच्चों के तलवार।।
*
जिन में सब सुख ढूँढते,  क्या उन की तकदीर।
कुछ को सुख अतिरेक में, कुछ को केवल पीर।।
*
वंचित  बच्चों  को  मिले, शिक्षा  का सन्सार।
बाल दिवस का तब कहीं, सपना हो साकार।।
*

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 15, 2022 at 8:22pm

आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 15, 2022 at 7:28pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन यथार्थ की कसौटी पर बहुत ही उम्दा दोहे पढ़कर अच्छा लगा सादर शुभकामनाएं

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