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2122       2122       2122       212

नफ़रतों की  आग भड़की भाईचारा  जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा


भीड़  ने  पकड़ा  किसी  को, देखते  ही  देखते
अम्न की उम्मीद उल्फ़त का सितारा जल उठा
 
वहशियों ने  वहशतों की तोड़  दी हर एक  हद
फिर कोई अरमान,आँखों का सहारा जल उठा

आह ये  नफ़रत  नगर  से  गाँव  कैसे आ  गई
खेत झुलसे हैं  कहीं खलिहान सारा जल उठा
आज  फिर से रात  काली आ गई  फुफकारती
आज फिर 'ब्रज' ने पुराना ग़म सँवारा जल उठा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2022 at 8:17pm

उचित है आदरणीय समर कबीर जी...रोजमर्रा बोले जाने वाले बहुत शब्द हैं जो हम गलत उच्चारण करते हैं...इसलिए ये कमियां रह जाती हैं।

लेकिन ओबीओ पे आप हैं बताने के लिए...उसके लिए आपका धन्यवाद...लेकिन अगर 'हद्द' 21 भी लें तो 'एक हद्द' को 212 पढा जा सकता है न??

Comment by Samar kabeer on April 26, 2022 at 3:45pm

जनाब बृजेश कुमार जी आदाब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

'वहशियों ने  वहशतों की तोड़  दी हर एक  हद'

आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "हद्द" 21 है ,देखिएगा I 

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