For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरगिटी रंगबाज़ी की आदत तेरी----- ग़ज़ल

212 212 212 212

जब कभी दर्द हद से गुज़रने लगा
शाइरी का हुनर तब निखरने लगा

ज़ख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई
हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा

तन के भीतर जो उस आइने में उतर
कौन ऐसा है जो अब सँवरने लगा

बेवफ़ाई का ऐसा हुआ है असर
एक सन्नाटा दिल में पसरने लगा

रँग बदलने की आदत तेरी गिरगिटी 
सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा

मौलिक अप्रकाशित

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 11, 2022 at 8:20pm

आदरणीय ब्रज जी सादर स्वागत आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 11, 2022 at 7:54pm

बहुत खूब कहा आदरणीय मिश्रा जी...हार्दिक बधाई

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 10, 2022 at 10:17pm

आदरणीय लक्ष्मण सर बहुत बहुत आभार।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 10, 2022 at 10:16pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए सादर आभार।

1.इसमें ऐब-ए-तनाफुर कहाँ है?

2. मैं ग़ज़ल के उच्चारण आधारित लक्षण को ध्यान में रखता हूँ.....चूँकि मैं आदत और तेरी का सुस्पष्ट और अलग अलग उच्चारण कर पा रहा हूँ इस लिए इस मिसरे को भी मैं दोष रहित ही मानता हूँ। 

इसलिए मैं अपनी किसी भी ग़ज़ल में उच्चारण की समस्या सम्बन्धी इज़ दोष को उपेक्षित कर देता हूँ। 

अन्य शब्दों में कहूँ तो मैं इसे ऐब नहीं मानता।

Comment by Chetan Prakash on April 10, 2022 at 10:03am
आदाब, बंधु, बह्रे मुतदारिक मुसम्मन सालिम में ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास किया है, आपने ! हाँ, एकाधिक मिसरे 'एब -ए - तनाफुर ' के दोष से ग्रसित हैं ;
1."जख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई "
2.रंग बदलने की आदत तेरी गिरगिट"
देखिएगा !
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 6:32am

आ. भाई पंकज जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 8:23pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम

आपके सुझाव समुचित हैं, सुधार अवश्य होगा।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2022 at 8:08pm

प्रिय अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा ख़ुश रहो, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें I 

'हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा'

चूँकि आपने ग़ज़ल में प्रयोग हुए सभी उर्दू स्ग्ब्दों में नुक़्ते लगाये हैं इसलिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में 'कागज़ों ' को "काग़ज़ों" कर लें I

तन के भीतर जो उस आईने में उतर'

इस मिसरे में 'आईने' को "आइना" कर लें, वज़्न बिगड़ रहा है I 

'गिरगिटी रंगबाज़ी की आदत तेरी
सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा'

इस शे`र के सानी मिसरे पर विचार करें I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service