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ग़ज़ल नूर की - जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया

जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया 
सुनते हैं वो पागल लड़का टूट गया.
.
थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस
और अचानक मेरा सपना टूट गया.
.
अब ये आँखें कोई ख्वाब नहीं बुनतीं
पिछली नींद में मेरा करघा टूट गया.
.
अपने लालच को तुम काबू में रक्खो
वो देखो इक और सितारा टूट गया.
.
एक ज़रा सी बात से बातें यूँ बिगडीं
फिर तो जैसे हर समझौता टूट गया.
.
आप अदू से दूर हुए ये नेमत है
बिल्ली की क़िस्मत से छींका टूट गया.
.
कह के मुकरना तेरी आदत होगी पर
सोच अगर लोगों का भरोसा टूट गया.
.
तेरी याद की गहरी खाई से बाहर
आते ही आते फिर रस्सा टूट गया.
.
“नूर” मेरा उस नूर से मिल जाएगा फिर
जस पल मेरे जिस्म का पिंजरा टूट गया.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 5, 2021 at 11:54am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2021 at 11:52am

धन्यवाद आ. समर सर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2021 at 11:51am

धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन साहब

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2021 at 11:51am

धनयवाद आ. दण्डपाणी जी

Comment by Samar kabeer on October 4, 2021 at 3:35pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब ' अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें I 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2021 at 8:49am

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, ख़ूबसूरत, नफ़ीस और आम-फ़ह्म ग़ज़ल हुई है शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। सादर।

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