2122, 2122, 2122
1)कर लिया हमने ख़सारा दो मिनट में
हो गया दिल ये पराया दो मिनट में
2)उम्र उसकी राह तकते कट गई है
आ रहा हूँ कह गया था दो मिनट में
3)थी उसे जल्दी तो मैं भी कुछ न बोला
हाल उसको क्या सुनाता दो मिनट में
4)जिस्म कैसे साथ दे अब उम्र भर तक
पक रहा है आज खाना दो मिनट में
5)होती है नाज़ुक बहुत रिश्तों की डोरी
टूट जाता है भरोसा दो मिनट में
6)लोग कहते हैं 'अनीस' इतना है माहिर
वो बना लेता है अपना दो मिनट में
अनीस अरमान
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब रवि शुक्ला जी ग़ज़ल तक आने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आ. भाई अनीस जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
उम्दा गजल कही आपने आदरणीय अनीस जी रदीफ का बेहतर इस्तेमाल हुआ । मुबारक बाद कुबूल करें
जनाब सौरभ पाण्डेय जी ग़ज़ल पर आपकी इस प्रतिक्रिया ने ऊर्जा से भर दिया है मुझे, सच कहूँ तो ऐसे प्रयोग करते वक़्त एक डर भी बना रहता है इसे किस तरह लिया जाएगा पर आपने मेरा डर दूर कर दिया, इस ऊर्जा से कुछ और बेहतर लिख सकूँगा अब, आपका बहुत बहुत शुक्रिया
वाह, क्य बात है दो मिनट में !
आदरणीय अनीस अरमान साहब, इस ग़ज़ल के कुछ शेरों के अंदाज पर मैं दंग हूँ. क्या खूब मिसर् हुए हैं. यथा,
थी उसे जल्दी तो मैं भी कुछ न बोला
हाल उसको क्या सुनाता दो मिनट में ... ..... क्या खूब. क्या दम
जिस्म कैसे साथ दे अब उम्र भर तक
पक रहा है आज खाना दो मिनट में ....... ..... याद रखने और सुनाने लायक शेर हुआ है यह
ऐसे में, मक्ते पर अलग से बधाई.
शुभ-शुभ
जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, देर से जवाब देने के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ
आदरणीय चेतन प्रकाश जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया देर से प्रतिक्रिया के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ
जनाब अनीस अरमान जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
आदाब, भाई अनीस अरमान, छोटी बह्र, लेकिन सहज भाव अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारक हो!
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