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मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-2121-1221-212

मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े
काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)

भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)

हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो
उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)

सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर
बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)

सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी
देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े (5)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Chetan Prakash on August 3, 2021 at 4:13am

अच्छी ग़ज़ल हुई, सलक गणवीर सिंह , आदाब ! बस एक सुझाव दे सकता हूँ, वो ये कि मतले के ऊला में 'तो' के स्थान पर ' वो' कर ले! सादर  ! 

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:27pm

उस्ताद -ए - मुहतरम साहिब
आदाब

 ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.
इस्लाह के लिए मश्कूर -ओ -ममनून हूँ 

              

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:20pm

आदरणीय  Saurabh Pandey जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:19pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2021 at 8:44pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । सुधीजनों की टिप्पणी का संज्ञान लें । सादर..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2021 at 12:33am

आदरणीय सालिक गणवीर जी, बढिया कह गये. बहरहाल, तनिक और समय देना था. मिसरे और गढ़ जाते. 

शुभातिशुभ 

Comment by Samar kabeer on July 26, 2021 at 6:24pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े'

मेरे ख़याल से इस मिसरे में 'तो' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।

'भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े'

इस शैर के ऊला में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं, इसे यूँ कह सकते हैं:-

'भौहें तनी थीं जिसकी मुझे देख कर कभी'

Comment by सालिक गणवीर on July 24, 2021 at 11:01am

आदरणीय  Chetan Prakash जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by Chetan Prakash on July 24, 2021 at 9:27am

आदाब,  सालिक गणवीर साहब,  छोटी  सी किन्तु  खूबसूरत ग़ज़ल  कही आपने, बधाई  !

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