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आपकी उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नीलेश भाई.
आपके सवालों का मैं उत्तर क्या दूँ ? .. आप स्वयं समाधान ढ़ूँढ़ें और पटल को उपकृत करें.
शुभातिशुभ
आ. सौरभ सर,
लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली. आनंद हुआ.
ग़ज़ल के कुछ शेर अच्छे हुए हैं.
मतले पर अमीरुद्दीन साहब से सहमत हूँ कि दोनों मिसरों में रब्त का आभाव है. बेटियों की खिलखिलाहट का दर्द पीने से मैं कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ सका. आप एक्सप्लेन कर देंगे तो शायद क्लियर हो जाए.
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आदरणीय चेतन सर.. प्रणाम !
आप जो कुुछ कह रहे हैं, उस पर भी मनन करूँगा.
ठीक न ?
जय-जय
आदरणीय समर साहब, बातें वही जो हम-आप बतिया चुके हैं.
तिस पर भी जो कुछ घुमड़ती रह गयी, आपने उन्हें नरम-गरम कर साझा कर लिया. आभारी हूँ.
क्या कहूँ कैसे कहूँ ये वक्त भी क्या आ गया ..
चाँद है तारे भी हैं कुछ पर अमा का भान है !
'न' को अदलना-बदलना यहाँ संभव है. कर देता हूँ, साहब.
एक बार और इस बिन्दु पर कभी चर्चा हो चुकी है क्या ? संभवत:.
वैसे आश्वस्त नहीं हूँ. अभी सुधार कर लेता हूँ.
मैं अब अपनी उपस्थिति की बारम्बारता को निरंतर करने का प्रयास कर रहा हूँ. गनेस भाई से इसे ले कर मेरी आश्वस्तिकारी चर्चा हुई थी.
शुभ-शुभ
नमन, आदरणीय सौरभ साहब , "पश्चिमी आकाश मे
सूरज इशारे पा गया" आप स्वयं सूर्य को एक वचन, संज्ञा मान रहे हैं, और हमारे ब्रह्मांड का सत्य
सत्य भी यही है ! फिर, आदरणीय, " नहीं,जी . सूर्य से कोई प्रश्न नहीं है क्योकि सूर्य एकवचन कर्ता नहीं है" से ध्यानस्थ होकर भी क्या प्राप्त होगा, श्री जी ? सादर
//पता नहीं अभी तक की प्रतिक्रियाओं के सापेक्ष क्या कहा जाना उचित होगा.//
भाई, आप जानते हैं कि मैं दूसरों की टिप्पणी देख कर टिप्पणी देने वाला पाठक नहीं हूँ, और न ही दूसरे सदस्यों की टिप्पणी को काटना मेरा मक़सद होता है, मुझे मतला जैसा लगा मैंने इज़हार कर दिया ।
//हम ओबीओ पर यह नई प्रवृति देख रहे हैं कि पाठकीयता की आड़ में विद्वद्जन कुछ भी समझ-कह जा रहे हैं. हो सकता है एक विशिष्ट आयोजन के अलावा मेरा ही संपर्क इस पटल से एक अरसे से टूटा हुआ है. अन्यथा, ऐसी टिप्पणियों की हम तो सोच भी नहीं सकते थे.//
ओबीओ पर तो आजकल वो कुछ हो रहा है जिसकी कल्पना भी हमने नहीं की थी, और ये सब प्रबंधन समिति के सदस्यों की ग़ैर हाज़िर होने के कारण हो रहा है, आजकल टिप्पणियाँ ज़ियादा तर बहुत कम शब्दों में की जाती हैं, मसलन 'अच्छी रचना हुई बधाई', आयोजनों का स्तर ये है कि 'तरही मुशाइर:' को छोड़कर बाक़ी के तीन आयोजन असफल कहे जा सकते हैं,इसका कारण ये कि आयोजन संचालक ही आयोजन से ग़ाइब होते हैं,कभी कभी तो आयोजन का बॉक्स खुलवाने और बंद करने के लिये मुझे रात 12 बजे आपको या जनाब बाग़ी जी को फ़ोन करना पड़ता है,जिसके आप गवाह हैं,चंद सदस्य ऐसे हैं जो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं,कुछ सदस्य तो ऐसे हैं जो सिर्फ़ अपनी रचना पोस्ट कर देते हैं और उस पर आई टिप्पणियों के जवाब दे देते हैं,दूसरों की रचनाओं से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता, कार्यकारिणी सदस्य भी लापता रहते है, ऐसे हालात में जो हो रहा है उसे ग़नीमत जानें कि ओबीओ की साख अल्लाह के फ़ज़्ल से अब भी क़ाइम है और इसके लिये चंद सक्रिय सदस्यों का ही योगदान है ।
//सुझाव उचित है. किंतु ऐसी कोई बाध्यता भी है क्या ? मुझे तो प्रतीत नहीं होता.//
बिल्कुल बाध्यता है, 'क़ाबिल' शब्द की ज़िद "नाक़ाबिल" है,इसे 'न क़ाबिल' लिखना उचित नहीं, अगर 'न' का प्रयोग करना ही पड़े तो उसी सूरत में होगा जैसे मैंने उदाहरण दिया है, 'कामयाब' शब्द की ज़िद 'ना कामयाब' या "नाकाम'' होगा न कि ' न काम' या 'न कामयाब', उम्मीद है आप समझ गये होंगे ।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी,
//प्रश्न सूर्य जैसे जीवन की धुरी के रुपक पर, मान्यवर आप, अपनी ग़ज़ल के माध्यम से लगा रहे हैं, और, पाठकीयता पर निरीह पाठक की योग्यता / क्षमता पर लगा रहे//
नहीं, जी. सूर्य से कोई प्रश्न नहीं है. क्योंकि सूर्य एकवचन कर्ता नहीं है.
आप शेर की पंक्तियों पर तनिक और ध्यानस्थ तथा एकाग्र हों.
जनाब सौरभ भाई, अभी ओबीओ के तरही मुशाइर: में व्यस्त हूँ, इसके बाद हाज़िर होता हूँ ।
आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी उपस्थिति तथा सहमति का आभार.
शुभ-शुभ
आदरणीय समर साहब,
आपकी इस विशद टिप्पणी पर हार्दिक आभार संप्रेषित करने के पहले अपनी उपस्थिति में हुए विलम्ब के प्रति अपने भाव साझा करना उचित समझता हूँ.
//बहुत ख़ूब मतला हुआ है//
पता नहीं अभी तक की प्रतिक्रियाओं के सापेक्ष क्या कहा जाना उचित होगा.
हम ओबीओ पर यह नई प्रवृति देख रहे हैं कि पाठकीयता की आड़ में विद्वद्जन कुछ भी समझ-कह जा रहे हैं. हो सकता है एक विशिष्ट आयोजन के अलावा मेरा ही संपर्क इस पटल से एक अरसे से टूटा हुआ है. अन्यथा, ऐसी टिप्पणियों की हम तो सोच भी नहीं सकते थे.
//इस तब्दीली का सबब ये है कि 'क़ाबिल' शब्द के पहले 'न' लघु में लेना उचित नहीं होता//
सुझाव उचित है. किंतु ऐसी कोई बाध्यता भी है क्या ? मुझे तो प्रतीत नहीं होता. ऐसी कोई व्यवस्था मिसरों में उच्चारण को निरापद रखने के लिहाज से एक सीमा तक उचित हो सकता है.
लेकिन क्या यह बाध्यता भी हो जाएगी ? तनिक चर्चा उचित होगी, भाईजी.
कुल मिला कर प्रस्तुति पर आपने अपनी मुखर सहमति दी है, यह तोषदायी है. हार्दिक धन्यवाद.
शुभातिशुभ
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