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किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र (ग़ज़ल)

११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२

किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र

तुझे दिल के रथ पे बिठा के मैं कभी ले चलूँ कहीं चाँद पर

तुझे छू सकूँ तो मिले सुकूँ तुझे चूम लूँ तो ख़ुदा मिले

तू जो साथ दे जग जीत लूँ तूझे पी सकूँ तो बनूँ अमर

मेरे हमनशीं मेरे हमनवा मेरे हमक़दम मेरे हमजबाँ 

तुझे तुझ से लूँगा उधार, फिर, भरूँ किस्त चाहे मैं उम्र भर

कहीं धूप है कहीं छाँव है कहीं शहर है कहीं गाँव है

है कहाँ चली मेरी रहगुज़र तू जो साथ है तो किसे ख़बर

मेरी भूख तू मेरी प्यास तू मेरा जिस्म तू मेरी जान तू

तेरा नाम ख़ुद का बता रहा तू बसी है मुझमें कुछ इस क़दर

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 29, 2021 at 11:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Aazi Tamaam जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 29, 2021 at 11:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

Comment by Aazi Tamaam on April 27, 2021 at 8:00am

सादर प्रणाम आदरणीय धर्मेंद्र जी अच्छी ग़ज़ल हुई है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 1:18pm

आ. भाई धर्मेंद्र जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

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"   आदरणीय मिथिलेश जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार.…"
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"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
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