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छोटी सी इबादत (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (36)

भीड़-भाड़ वाली सड़क पर पड़े केले के छिलके पर हमीद का पैर पड़ने ही वाला था कि उसने खुद को संभाल लिया और तुरंत उसे उठा कर हाथ में ले लिया। शबाना शौहर से बिना कुछ कहे बुरा सा मुँह बनाकर आगे चलती रही। अब्बूजान भी चुपचाप चलते रहे। कुछ दूर चलने पर जब एक गाय दिखाई दी, तो हमीद ने उसके नज़दीक जाकर अपने हाथ से उसे वह केले का छिलका खिला दिया। बाक़ी दोनों यथावत चलते रहे गन्तव्य की ओर । कुछ और दूर चलने पर एक बड़ा सा पत्थर बीच सड़क पर दिखा जिसे फांदते हुए राहगीर निकलते जा रहे थे जिन में कुछ बच्चे व बुज़ुर्ग भी थे। हमीद से रहा नहीं गया। शर्ट की आस्तीनें ऊपर चढ़ाकर उसने वह पत्थर दोनों हाथों से उठाया और सड़क के किनारे उस जगह पर रख दिया, जहां एक गड्ढा था । हाथों की धूल साफ करते हुए वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ उन दोनों के पास पहुँच गया। बीवी व अब्बूजान भले ही चुप थे ,लेकिन उनके चेहरे बहुत कुछ बोल रहे थे । घर पहुँचते ही चेहरों के भाव शब्दों में फूट पड़े।

" बहू बिलकुल सही कहती है कि तुम किसी के साथ भी कहीं भी ले जाने लायक नहीं हो ! अरे विचित्र प्राणी, तुम्हारी पागलों जैसी हरकतों को कोई कितनी बार बरदाश्त करेगा, मैं भी परेशान हो गया हूँ तुम्हारी विचित्र आदतों से !" - अब्बूजान हमीद पर बरस पड़े और दूसरी तरफ खड़ी बीवी टेढ़ा सा मुँह बना रही थी।

इस बार प्रत्युत्तर में हमीद भी बोल ही पड़ा -"विचित्र तो आप लोग हो, जो मेरी आदतें विचित्र ही नज़र आती है ! ये क्यों नहीं समझते कि ये छोटे-छोटे नेक काम भी एक तरह की इबादत ही है। बिना मतलब समझे, बिना कोई सीख लिये मज़हबी क़िताबें तोतों की तरह पढ़ते रहना और टीवी देखते हुए माला जपना भी भला कोई इबादत है ?"

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:58am
मेरी इस रचना पर समय देकर अपनी टिप्पणियों द्वारा अनुमोदन करने व विचार साझा करते हुए हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , आदरणीय नादिर ख़ान साहब, आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीय सुनील वर्मा जी व आदरणीय तेजवीर सिंह जी। तकनीकी समस्याओं के कारण सभी ब्लोग-पोस्ट पर टिप्पणियों के उत्तर देने में विलंब हेतु क्षमा चाहता हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2015 at 12:01am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, मैं आपकी इस लघुकथा पर आपको हृदय की गहराइयों से धन्यवाद और बधाइयाँ कह रहा हूँ. हो सकता है, यह प्रस्तुति कतिपय पाठकों को तनिक उपदेशात्मक सी लगी हो. लेकिन इस कथा की अंतर्धारा अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले आती है. इन बहुत कुछ ने ही अबोले रह कर इस लघुकथा को अवश्य पठनीय बना दिया है.
शुभेच्छाएँ आदरणीय

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 7:12pm

बहुत खूब कहा आदरणीय उस्मानी साहब और खूबसूरत अंदाज़ में कहा मुबारकबाद आपको .....

Comment by Sushil Sarna on November 25, 2015 at 5:27pm

बहुत सुंदर आदरणीय उस्मानी साहिब जीवन की ये छोटी छोटी बातें ज़हन को कितना सुकून देती हैं अगर ये समझ इंसान में आजये तो जीवन जन्नत हो जाए। बहुत सुंदर। ... हार्दिक बधाई। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 11:44am

हार्दिक बधाई शेख उस्मानी जी!बेहतरीन लघुकथा!सच कहा आपने यह भी एक इबादत का ही रूप है!

कृपया ध्यान दे...

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