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3 -मुक्तक

1.
हर रंज़ पे .मुस्कुराता हूँ
तन्हा तुझे गुनगुनाता हूँ
किस रंग पे मैं यकीं करूँ
हर रंग से फ़रेब खाता हूँ
..................................
2.
हर तरफ बाज़ार नज़र आता है
हर रिश्ता लाचार नज़र आता है
अब गुल नहीं महकते बहारों में
हर शाख़ पर ख़ार नज़र आता है
.......................................................
3.
रास्ते बदल जाते हैं ...तूफाँ जब आते हैं
यादों के अब्र में ...अरमाँ पिघल जाते हैं
रुकते नहीं अश्क. .कफ़स में पलकों की
किनारे तोड़ वो आँख से निकल आते हैं


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:21pm

आदरणीय विजय निकोर जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया  

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:20pm

परम आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मुक्तकों पर आपकी स्नेह बरखा से सृजन हेतु नयी शक्ति मिली  .... आपका हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:18pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 7:53am

अति सुन्दर मुक्तक। बधाई, आदरणीय सुशील जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 11:11pm

मुक्तकों के लिए बधाई आदरणीय.. .

दिल से कही बातें बयां हुई हैं .. .

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 11:26am

तीनो मुक्तक पसंद आये आ० सुशील सरना जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on June 16, 2014 at 3:55pm

आदरणीया महिमा जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:14pm

तीनो मुक्तक सुंदर बने है आदरणीय बधाई आपको सादर

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2014 at 12:20pm

आदरणीया मीना पाठक जी मुक्तकों  पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Meena Pathak on June 13, 2014 at 5:50pm

बहुत खूब .. बधाई 

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