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अपनी हर सांस में …

अपनी हर सांस में …

अपनी हर सांस में...तुझे करीब पाता हूँ
तुझे हर ख्याल में अपना हबीब पाता हूँ

बिन तेरे ज़िंदगी की हर मसर्रत है झूठी
राहे वफ़ा में तुझे अपना नसीब पाता हूँ

तुम्हारे वाद-ए-फ़र्दा पर ..यकीं करूँ कैसे
हर दीद में इक तिश्नगी ..अजीब पाता हूँ

कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी
अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ

रूए-ज़ेबा को भला ज़हन से भुलाऊँ कैसे
बिन तुम्हारे तो मैं खुद को गरीब पाता हूँ

(मसर्रत = खुशी ,वाद-ऐ-फ़र्दा = कल आने का वादा ,
कूए कातिल = कातिल की गली ,रूए ज़ेबा =सुंदर चेहरा )

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:16pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी  रचना पर आपकी स्नेहात्मक  प्रशंसा और आत्मीय सुझाव  का हार्दिक आभार।  मैं आपके सुझाव को अमल में लाने का अवशय प्रयास करूंगा। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 19, 2014 at 10:10pm

आदरनीया सुशील सरन भाई , बहुत सुन्दर रचना लगी , मेरी दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । मिसरे अगर एक ही बह्र  मे होते तो खूब सूरत ग़ज़ल हो सकती थी , आदरनीय थोड़ा प्रयास कर देखिये ॥

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 8:42pm

आदरणीया महिमा श्री  जी रचना पर आपकी आत्मीय स्नेहात्मक अभिव्यक्ति  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 8:41pm

आदरणीय विजय निकोर जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 7:52pm

बहुत खूब आदरणीय .. बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:50pm

रचना अच्छी लगी। बधाई आदरणीय सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 11:56am

आदरणीया कुंती मुख़र्जी  रचना पर आपकी मधुर  अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 11:55am

आदरणीया मीना पाठक  जी रचना पर आपकी मधुर  अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 11:53am

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार 

Comment by coontee mukerji on June 18, 2014 at 10:12pm

कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी
अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ....क्या बात है.

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