For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोझ ...(250 वीं रचना )

बोझ ...

हम
कहाँ जान पाते हैं
चेतन या अवचेतन में
अटकी हुई कुंठाओं की
मूक भाषा को

उनींदी सी अवस्था में
कुछ सिमटी हुई
आशाओं को

मन में उबलते
एक असीमित बोझ की
पहचान को

साँसों की थकान
अश्रु की व्यथा
और
रुदन के आह्वान को

तुम्हारे
स्पर्श की अनुभूति में लिप्त
क्षणों की
परिणिती के आभास ने
यूँ तो
अंजाने संताप से
मुक्ति का ढाढस दिया
किन्तु
जागृति बोध से
हृदय की कंदराओं में
क्यूँ रह रह के
ये विचार आता है
कि कहीं
ये किंचित मात्र सा आभास भी
किसी स्वप्न-रेख सा
ओझल हो गया तो
शायद
जीना भी
इक बोझ
न बन जाए

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 8, 2017 at 4:15pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी रचना के भावों को सहमति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।

Comment by Sushil Sarna on May 8, 2017 at 4:15pm

आदरणीय समर कबीर साहिब रचना के भावों को अपनी मधुर प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।

Comment by Sushil Sarna on May 8, 2017 at 4:15pm

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब प्रस्तुति के भावों मान देती आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार। अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 7, 2017 at 9:21am
Bhavpurn rachna hui hai adarniya Sushil ji.
Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 9:54pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपकी हर कविता सोचने पर मजबूर करती है,बहुत ख़ूब वाह, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:08pm

आदरनीय सुशील भाई , एक् और अच्छी कविता के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 6:55pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी प्रस्तुति को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 6:55pm

आदरणीय  Mohammed Arif साहिब प्रस्तुति में निहित भावों को सहमति देती आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का दिल शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 6:55pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on May 5, 2017 at 3:42am
आद0 सुशील सरना जी बेहद भावपूर्ण रचना, बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service