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उसने मुझको देखा है,
शायद कुछ तो सोचा है।
मंज़र कुछ ऐसा है जो,
उसकी आँखों देखा है।
मुश्क़िल राहों पे अब वो,
धीरे-धीरे चलता है।
कहता है वो सच को सच
सबको कड़वा लगता है।
उस पे शक़ करना कैसा,
वह तो जाँचा परखा है।
सुख-दुख के मौसम को, वह
ख़ामोशी से सहता है।
बारिश हो जाने से अब,
मौसम बदला-बदला है।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 20, 2017 at 11:25am

आ० मोहम्मद आरिफ साहिब, शीर्षक दुरुस्त कर दिया गया हैI सादरI 

Comment by Mohammed Arif on February 20, 2017 at 8:51am
आदरणीय सुरेन्द्रनाथ जी आपका बहुत-बहुत आभार । जहाँ बात शीर्षक की है तो बड़ा हो गया है । इसे कैसे सुधारा जाय?मार्ग दर्शन करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 20, 2017 at 6:26am
मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा गजल, शैर दर शैर दाद के साथ बधाई निवेदित करता हूँ। एक निवेदन, आपका शीर्षक बहुत बड़ा हो गया हूं, उसे सूक्ष्म कर लेवे, सादर
Comment by Mohammed Arif on February 19, 2017 at 11:15pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब,आपका बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2017 at 9:01pm
आदरणीय इस उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर

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"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
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