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नाम बड़ा है उस घर का
पहरा जिस पर है डर का

प्यास बुझाना प्यासे की
कब है काम समंदर का

बिना बात बजते बर्तन
दृश्य यही अब घर-घर का

बोल कहे और जय चाहे
क्या है काम सुख़नवर का?

महल दुमहले जिसके हैं
वही भिखारी दर-दर का।

'राणा' सच कहते रहना
रंग न छूूटे तेवर का।

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2018 at 12:32pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Mohammed Arif on April 23, 2018 at 12:07pm

आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब,

                             कठिन बह्र पर बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र दूसरे से लाजवाब । हार्दक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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