For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम (इस्लाही)

221 2121 1221 212

...

हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,

कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।

माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,

पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।

ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,

आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।

हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,

ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।

अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की

इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।

---------------

मौलिक व अप्रकाशित

हर्ष महाजन

Views: 829

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 1:10pm

आदरणीय समर जी आदाब ,

ख्यालों को कितनी सहजता से पिरोया है सर । आभारी हूँ । 'बैमान' शब्द का पर्याय लेकर फिर मार्गदर्शन के लिए हाजिर होता हूँ सर । बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

सादर !

Comment by Samar kabeer on February 27, 2018 at 11:53am

दूसरा शैर यूँ कर सकते हैं :-

'माना मरीज़ आज महब्बत के हो गये

पर अपनी ज़िंदगी के सुलेमान हैं सनम'

तीसरा शैर यूँ कर सकते हैं :-

ये जो हमारी आँखों में हैं अश्क देखिये

आँसू न इनको समझो ये तूफ़ान हैं सनम'

चौथे शैर में 'बे ईमान' को '"बैमान" नहीं कर सकते,इस शैर को दूसरे क़ाफिये के साथ कहने का प्रयास करें ।

Comment by Harash Mahajan on February 26, 2018 at 10:59pm

आदरणीय समर जी आदाब,

आपकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

(1)सर विकिपीडिया पड़ने की आदत की वजह से ये "सुलेमान" शब्द मिला ।

उनजे मुताबिक ,....सोलोमन=सुलेमान=राजा

(2)सर तीसरे शेर में ...बे-शुमार अश्कों का बहाव को रोकने की इल्तिजा ।

(3) सर चौथे शेर में बेईमान=बैमान ।

सर आपके मार्गदर्शन से ही आगे बढ़ना चाहूंगा ।आपकी इस्लाह का ििनतज़ार रहेगा।

सादर

Comment by Samar kabeer on February 26, 2018 at 10:25pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल अभी कुछ और समय चाहती है ।

दूसरे शैर में 'सुलेमान' का क्या अर्थ लिया है आपने?

तीसरे शैर का भाव स्पष्ट नहीं है ।

चौथे शैर में 'बैमान' का क्या अर्थ है?

अगली प्रतिक्रया आपका जवाब आने पर दूँगा ।

Comment by Harash Mahajan on February 26, 2018 at 10:08pm

आदरणीय राम अवध जी आपकी होंसिला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आपने सही कहा उस ग्सलती का अहसास हुआ हमें । कुछ सुधार किया है ज़रा गौर कीजियेगा । मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया ।

"पर भूल कर भी कह दें तुम्हें तुमको भूले हम,"

क्या मूल प्रति में सुधार कर सकते हैं ?

सादर ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 26, 2018 at 6:41pm

आ० हर्ष महाजन जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। चौथा शेर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है। फायलुन बजाय फऊलुन अर्थात 122 मापनी हो गई है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service