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भुलाने के लिए राज़ी...संतोष

ग़ज़ल
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

भुलाने के लिए राज़ी तुझे ये दिल नहीं होता
तभी तो याद से तेरी कभी ग़ाफ़िल नहीं होता

महब्बत को अभी तक मैंने अपनी राज़ रक्खा है
तुम्हारा ज़िक्र यूँ मुझसे सरे महफ़िल नहीं होता

तुझे ही ढूँढता रहता मैं अपने आप में हर दम
सनम तू मेरे जीवन में अगर शामिल नहीं होता

दग़ा देना ही आदत बन गई हो जिसकी ऐ यारो
भरोसे के कभी वो आदमी क़ाबिल नहीं होता

हमेशा बीज बोता है जो नफ़रत के ज़माने में
उसे 'संतोष'जीवन में कभी हासिल नहीं होता

#संतोष

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on December 13, 2017 at 9:56pm

धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र जी!!!

Comment by Afroz 'sahr' on December 13, 2017 at 11:51am
आदरणीय संतोष जी अच्छी ग़ज़ल हुई है मेंरी और से बहुत बधाई आपको,,
Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 4:41am

आद0 सन्तोष जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल पर शैर दर शैर मुबारकबाद कुबूल फरमायें।

Comment by santosh khirwadkar on December 12, 2017 at 2:52pm

शुक्रिया आदरणीय अजय साहब...!!!

Comment by Ajay Tiwari on December 12, 2017 at 1:09pm

आदरणीय संतोष जी,

आपने मक्ते में आपने नाम का इस्तेमाल जिस तरह किया है वो बेहतरीन है.

अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाईयाँ.

सादर 

Comment by santosh khirwadkar on December 10, 2017 at 10:27pm

आदरणीय आरिफ़ साहब ...शुक्रिया!!!

Comment by santosh khirwadkar on December 10, 2017 at 10:27pm

आदरणीय विश्वकर्मा जी ,शुक्रिया!!!

Comment by Mohammed Arif on December 9, 2017 at 4:45pm

आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी आदाब,

                                         बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र बढ़िया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 9, 2017 at 3:05pm

आदरणीय संतोष जी खूबसूरत ग़जल के लिये बधाई।

Comment by santosh khirwadkar on December 8, 2017 at 11:45am

आदरणीय समर साहब ,प्रणाम के साथ तहेदिल से शुक्रिया!!!

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