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छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे - सलीम रज़ा रीवा

212 212 212 212

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 -

चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा 
मेरे महबूब जिस दम संवर जाएँगे

 -
बन संवर के उन्हें आज आने तो दो 
बज़्‍म में सब के चहरे उतर जाएँगे

 -

बंदा परवर अगर आप आएँ इधर
बन के गुल राह में हम  बिखर जाएँगे 

 -

इश्क़ की राह मुश्क़िल बहुत है मगर 

बे - ख़तर दोस्तों हम गुज़र जाएँगे

 -

तूने   छोड़ा अगर साथ मेरा कभी 
हिज्र मे तेरे घुट घुट के मर जाएँगे

 -

याद हमको  भी रख्खेगी दुनिया रज़ा 
काम ऐसा भी इक रोज़ कर जाएँगे

  -

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by Afroz 'sahr' on November 20, 2017 at 7:47pm
जनाब सवीम रज़ा साहिब मेंरे कहे को मान देने के लिए आपका मशकूर हूँ,,,,
Comment by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 7:45pm

जनाब समर कबीर 'साहिब ,

ग़ज़ल पे शिरक़त और मशविरे का शुक्रिया , तब्दीली कर दी गई है दोबारा शिरक़त की दरख़्वास्त है। 

Comment by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 7:44pm

जनाब अफ़रोज़ 'सहर'साहिब ,

ग़ज़ल पे शिरक़त और मशविरे का शुक्रिया , तब्दीली कर दी गई है देखिएगा। 

Comment by Samar kabeer on November 20, 2017 at 5:33pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब की बातों का संज्ञान लें ।

'बन्दा परवर अगर आप आएं इधर
राह में फूल बनके बिखर जाएँगे'
कौन बिखर जाएँगे भाई ?

'इश्क़ आसाँ नहीं है मगर दोस्तो
फिर भी राह-वफ़ा से गुज़र जाएँगे'
कौन गुज़र जाएँगे भाई?
Comment by Afroz 'sahr' on November 20, 2017 at 1:56pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब इस रचना पर बहुत बधाई आपको,,,,पाँचवे शेर में टंकण त्रुटि को दूर कीजिएगा,,
छठे शेर, और मक्ते में "ऐब ए शुतुर गु़रबा" हो रहा है देखिएगा,,,सादर,

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