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गजल(आज तो हर शख्स इतना पूछता)

2122 2122 212
आज तो हर शख्स इतना पूछता
हो गया क्या कत्ल? दिखता उस्तुरा।1

चंद घड़ियों में खबर देती रुला
मौत का मंजर यही हासिल हुआ।2

'वह' खड़ा है जुर्म के इकरार में
लग रहा अब यह जरा-सा अटपटा।3

जानते हैं लोग लगता मर्म भी
भेद कितना चुप्पियों में है छिपा!4

न्याय का डंडा खुदाया मौन क्यूँ?
देखना है,सच कहाँ तक साधता।5

चोर बन बैठे सिपाही आजकल
हो गया कितना कठिन यह भाँपना?6

रोशनी का दान भी व्यापार है
कीजिये भी हाथ बाँधे कल्पना।7
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 3:01pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अपने मख़्सूसूस अंदाज़ में अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें ।
5वें शैर में 'न्याय की डंडा' या "न्याय का डंडा" ?
Comment by SALIM RAZA REWA on September 17, 2017 at 12:45pm
आ. मनन कुमार जी ग़ज़ल के लिए बधाई,

कृपया ध्यान दे...

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