For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'महब्बत कर किसी के संग हो जा'

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

हिमाक़त छोड़ दे फ़रहंग हो जा
महब्बत कर किसी के संग हो जा

ग़ज़ल मेरी सुना लहजे में अपने
मैं गूँगा हूँ मेरा आहंग हो जा

यहाँ घुट घुट के मरने से है बहतर
निकल मैदाँ में मह्व-ए-जंग हो जा

करे अपना के दुनिया फ़ख़्र जिस पर
वफ़ा का वो निराला ढंग हो जा

चढ़े इक बार जिस पर फिर न उतरे
महब्बत का तू ऐसा रंग हो जा

ये दुनिया सीधे साधों की नहीं है
उदासी छोड़ शौख़्-ओ-शंग हो जा

जुदा ता उम्र कोई कर न पाए
"समर"के जिस्म का वो अंग हो जा
-----/
फ़रहंग-दानाई- बुद्धिमानी(उर्दू की एक लुग़ात का नाम )
आहंग-आवाज़
मह्व-ए-जंग-युद्ध में डूबना(लेकिन ये युद्ध तलवार वाला नहीं )
फ़ख़्र-गर्व
शौख़-ओ-शंग-चंचल,चालाक
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1248

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 24, 2017 at 9:01pm

वाह वाह लाजबाब 

Comment by Sushil Sarna on July 24, 2017 at 3:30pm

चढ़े इक बार जिस पर फिर न उतरे
महब्बत का तू ऐसा रंग हो जा

वाह आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल है। हार्दिक बधाई सर। सर ये महब्बत कहीं मोहब्बत तो नहीं ?

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 24, 2017 at 3:03pm

आदरणीय समर सर जी,,, एक और उम्दा ग़ज़ल के लिए आपको ढेरों ढेर बधाई 

Comment by Ravi Shukla on July 24, 2017 at 12:51pm

आदरणीय समर साहब बहुत ही खूबसूरती से आपने अपनी बात गजल के अश्‍ाआर में कही है हर शेर नायाब है सामान्‍य से लगने वाले कवाफी के निहायत ही उम्‍दा इसतेमाल ने उन्‍हे खास बना दिया कुछ नये अल्‍फाज भी जानने को मिले । इस गजल के लिये शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करें । सादर

Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 12:03pm
हिमाक़त छोड़ दे फ़रहंग हो जा
महब्बत कर किसी के संग हो जा । वाह!वाह!! कमाल का मतला कहा है आपने ।
हर शे'र बेजोड़-बेमिसाल है । फिर एक और धमाकेदार ग़ज़ल का आगाज़ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service