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बाक़ी थोड़ा बचपन है,
ये उसका भोलापन है ।
रूठे-रूठे चहरें हैं,
अब घर-घर सूनापन है ।
जतलाता है हरदम वो,
ये उसका ओछापन है ।
हाँ, उसकी रचनाओं में,
रहता कुछ तो चिंतन है ।
उनसे रिश्ता है लेकिन ,
रहती थोड़ी अनबन है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 11:13pm
बहुत-बहुत आभार बसंत कुमार शर्मा जी । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 11:12pm
बहुत-बहुत आभार प्रिय मोहित मुक्त जी ।
Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 11:11pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 24, 2017 at 10:30pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब , बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल
फरमाएँ

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 24, 2017 at 9:00pm

बहुत खूब 

Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 5:21pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by Ravi Shukla on July 24, 2017 at 4:22pm

आदरणीय मोहम्‍म्‍द आरिफ साहब अच्‍छी गजल कही आपने बधाई

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