For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तरही ग़ज़ल , जनाब रवि शुक्ल साहिब की नज़्र"

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें
और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें

गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें
मन्दिर-ओ-मस्जिद में जाएँ इक दिया रोशन करें

ये हमारी ज़िम्मेदारी है, हमारा फ़र्ज़ भी
नाम अपने बाप दादा का सदा रोशन करें

नफरतों के इन अँधेरों को मिटाने के लिये
हम चराग़ उल्फ़त के यारो जा ब जा रोशन करें

याद कर के नज़्म 'हाली'की,ज़ईफ़ा की तरह
झुटपुटे के वक़्त मिट्टी का दिया रोशन करें

आम कर दीजे 'ज़फ़र' साहिब के इस पैग़ाम को
"इक दिया जब साथ छोड़े, दूसरा रोशन करें

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1007

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 6:01pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:59pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:58pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:57pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 3:29pm

आ. तस्दीक़ साहब,
दूसरा  शेर ..हुस्न-ए-मतला है ...  अत: तेल का ही आयेगा ... तेल को कहने से क्या हासिल होगा?...
सानी   मिसरे में दिये का ज़िक्र है जो बात मुकम्मल कर रहा है ..
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:50am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:49am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:49am
आद0 समर साहब सादर प्रणाम, बहुत उम्दा ग़ज़ल। मतला का क्या कहना और गिरह का तो जबाब नही। आपकी सोच को नमन। बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 11, 2017 at 10:31pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है दाद के साथ
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -------शेर 2 के उला मिसरे में बात साफ नहीं हो पाई
''गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें '' या तेल को रोशन करें -----सादर

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 5:56pm

आली जनाब समर साहब आदाब सबसे पहले तो आपके तहे दिल से मशकूर ओ ममनून हूँ कि आपने मुझा नाचीज को अपनी गलज नज्र की इस नवाजिश के लिये तहे दिल से शुक्रिया ये नजराना मेरे लिये बहुत मायने रखता है आपकी मुहब्‍बतों के लिये बहुत बहुत शुक्रिया । स्‍नेह ऐसे हीबनाए रखें ।

और गजल की बात करें इस मिसरे पर बहुत ही मश्‍क की है हमने भी तो इसकी बहर और रदीफ से दो चार हुए है । आपने जिस खूबसूरती से जफर साहब की जमीन पर मतला और दीगर अश्‍आर कहें है वो काबिले तारीफ है गिरह ही सादगी बरबस ही ध्‍यान खींचती है । इस बाकमाल गजल के लिए आपको दिली मुबारक बाद और दाद पेश करते है । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service