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ग़ज़ल (मुहब्बत ही निभाई दोस्तों ) -

ग़ज़ल (मुहब्बत ही निभाई दोस्तों )
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2122 -2122 -2122 -212

आँख उसने जब भी नफ़रत की दिखाई दोस्तों |
मैं ने बदले में मुहब्बत ही निभाई दोस्तों |

रुख़ तअस्सुब की हवा का भी अचानक मुड़ गया
जिस घड़ी शमए वफ़ा हम ने जलाई दोस्तों |

गम है यह इल्ज़ाम साबित हो नहीं पाया मगर
आज़माइश फिर भी क़िस्मत में है आई दोस्तों |

बन गया दुश्मन अमीरे शह्र मेरा इस लिए
हक़ की खातिर ही क़लम मैं ने उठाई दोस्तों |

टिमटिमाने लग गई हर शमअ जुगनू की तरह
किस की महफ़िल में हुई जलवा नुमाई दोस्तों |

कारवाँ की ख़ैरियत की मांगिए रब से दुआ
राह ज़न के हाथ में है रहनुमाई दोस्तों |

दुश्मने जाँ बन गई तस्दीक़ दौलत बाप की
यूँ मुखालिफ़ तो न भाई से है भाई दोस्तों |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 3, 2017 at 7:06am
मुहतरम जनाब नीलेश साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया --मेरे ख्याल से क़लम शब्द इस्त्री लिंग है इसलिए उठाई ही आएगा ---सादर
Comment by Mohammed Arif on April 2, 2017 at 11:23pm
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2017 at 10:06pm

आ. तस्दीक़ साहब..
ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने ..
कलम उठाई ??.. कलम उठाया होना चाहिए ..
.
बाक़ी बहुत रँगी है आपकी ग़ज़ल ..बधाई 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2017 at 7:38pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---आपके मश्वरे के मुताबिक है की जगह था कर लिया है--सादर
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 4:10pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'यूँ मुख़ालिफ़ तो न भाई से है भाई दोस्तों
इस मिसरे में 'है'शब्द की जगह 'था'शब्द ज़ियादा अच्छा रहेगा,:-
"यूँ मुख़ालिफ़ तो न था भाई से भाई दोस्तों'
देखियेगा ।

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