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पूंजियों की सीरतें भी काली गोरी देखिये(ग़ज़ल 'राज '

2122  2122  2122  212

कर की चोरी देखिये जी धन की चोरी देखिये

लूटकर पकड़े गये तो जब्रजोरी देखिये

 

नोट्बंदी देखिये जी नोट खोरी देखिये

पूंजियों की सीरतें  भी काली गोरी देखिये

 

नोट्बंदी का हथौड़ा ऐसा बैठा पीठ पर

भ्रष्टता की सरबसर टूटी तिजोरी देखिये

 

बह रहे हैं नोट सारे वो पुराने हर जगह

क्या समन्दर क्या नदी तालाब मोरी देखिये

 

लूटखोरी की बदौलत खत्म पैसे बैंक में

 लाइनों की टूटती अब आस डोरी देखिये 

 

कुछ जुगाडू  भेड़िये बैठे वतन में अबतलक

पास उनके अब नई नोटों की बोरी देखिये

 

कह रहे अखबार टीवी कह रही सरकार है

आने वाले वक़्त में तस्वीर कोरी देखिये

----------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 10:46am

आ० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत शुक्रिया आपका |

Comment by Ravi Shukla on December 14, 2016 at 10:38am

आदरणीया राजेश दीदी  समसामयिक गजल पर हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें । हमारा विचार है नये नो‍टों की बोरी देखिये हो तो शायद उपयुक्‍त हो नोट पुल्लिंग है । सादर 

Comment by Mahendra Kumar on December 14, 2016 at 9:48am
आदरणीया राजेश मैम, वर्तमान परिस्थितियों पर सार्थक ग़ज़ल लिखी है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 9:03am

आद० सुशील सरना जी,ग़ज़ल पर प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आपका सादर . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2016 at 9:01am

आद० समर भाई जी ,ये समसामयिक ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया तहे दिल से आभारी हूँ .

Comment by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 8:07pm

वर्तमान  हालात के मद्देनज़र  बहुत ही सशक्त ग़ज़ल की प्रस्तुति की है आदरणीया राजेश कुमारी जी। दिल से बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on December 13, 2016 at 8:07pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले के सानी मिसरे में 'जब्र ज़ोरी' की सही तरकीब "ज़ोर जब्र"होती है,फिर भी क़ाफ़िया चल जायेगा ।

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Comment by rajesh kumari on December 13, 2016 at 7:22pm

मिथिलेश भैया,ग़ज़ल पर आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया मिली बहुत बहुत आभारी हूँ | 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2016 at 4:20pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपने तो नोटबंदी और उसके बाद की स्थिति पर पूरी ग़ज़ल ही कह दी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. वास्तविकता को उजागर करते अशआर प्रभावकारी हुए है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

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