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ग़ज़ल - फ़िक्रमन्दों से सुना, ये उल्लुओं का दौर है // --सौरभ

2122  2122  2122  212

 

एक दीये का अकेले रात भर का जागना..
सोचिये तो धर्म क्या है ?.. बाख़बर का जागना !

सत्य है, दायित्व पालन और मज़बूरी के बीच
फ़र्क़ करता है सदा, अंतिम प्रहर का जागना !

फ़िक्रमन्दों से सुना, ये उल्लुओं का दौर है
क्यों न फिर हम देख ही लें ’रात्रिचर’ का जागना ।

राष्ट्र की अवधारणा को शक्ति देता कौन है ?
सरहदों पर क्लिष्ट पल में इक निडर का जागना !

क्या कहें, बाज़ार तय करने लगा है ग़िफ़्ट भी 
दिख रहा है बेड-रुम तक में असर का जागना ।

हर गली की खिड़कियों में था कभी मैं बादशाह
वो मेरी ताज़ीम में दीवारो-दर का जागना !                         [ताज़ीम - इज़्ज़त, आदर

आज के हालात पर कल वक़्त जाने क्या कहे ?
किन्तु ’सौरभ’ दिख रहा है मान्यवर का जागना !
*************
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 1:35pm

आदरणीय जवाहरलाल जी, आप मेरी प्रस्तुति पर आये, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय, एक बात अवश्य साझा करना चाहूँगा. कि, ग़ज़लों की पंक्तियों को अभिधात्मक ढंग से यानी पंक्तियों के फेस वैल्यू के सापेक्ष नही लिया जाता. ग़ज़ल कुछ और कहती है. इसी कारण उयह कविता या गीत से अलग हुआ करती है.
पुनः हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 1:35pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आप से अनुमोदन मुग्ध कर रहा है.
और, हाँ आदरणीया, आपको तो पता ही है, हम ऐसे ही हैं..
:-)))))))))))

सादर धन्यवाद..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 1:35pm

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, आपकी विशद विवेचना ने चकित किया है. आपका सहयोग बना रहे. ग़ज़ल की पंक्तियाँ वहीं नहीं कह रही होतीं जैसी पढ़ ली जाती हैं. यही तो हम सभी को सीखना है. उसी अनुरूप मैं भी अभ्यास करता हूँ.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 1:34pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपका मुखर अनुमोदन आश्वस्त कर रहा है. सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 1:34pm

आदरणीय समर साहब, आपसे मिली प्रशंसा आह्लादकारी हुआ करती है. सादर धन्यवाद.

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2016 at 11:50am
आदरणीय सौरभ पांडेय जी , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई , सादर।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 5, 2016 at 9:50pm
लाजबाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 5, 2016 at 8:03pm
आदरणीय सौरभ सर, नासमझ हूँ, हर तरह से और गजल तो मेरे लिए क्लिष्ट है ही ...पर आपकी हर पंक्ति, हर शेर एक से बढ़कर एक है ...फिर भी समापन की पंक्ति सुखद है मेरी नजर में - किन्तु ’सौरभ’ दिख रहा है मान्यवर का जागना ! अगर सचमुच मान्यवर जग रहे हैं तो बहुत ही सुखद है ... सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 5, 2016 at 7:26pm

बहुत  अच्छी ग़ज़ल हुई है आद० सौरभ जी शेर  दर शेर  बधाई लीजिये 

राष्ट्र की अवधारणा को शक्ति देता कौन है ?
सरहदों पर क्लिष्ट पल में इक निडर का जागना !--वाह्ह्ह्ह 

दिख रहा है बेड-रुम तक में असर का जागना ----रूम को रुम??...आप तो ऐसे न थे :-)))))) 

 

हर गली की खिड़कियों में था कभी मैं बादशाह 
वो मेरी ताज़ीम में दीवारो-दर का जागना !   ---बहुत  सुंदर                      

Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2016 at 6:46pm

एक दीये का अकेले रात भर का जागना..
सोचिये तो धर्म क्या है ?.. बाख़बर का जागना !      वाह! आज तक मैंने धर्म को ले कर जितनी भी परिभाषाएँ (अथवा व्याख्याएँ या उपमाएँ) पढ़ी हैं, उन सब में से यह मुझे सबसे अधिक पसन्द आयी। मेरी तरफ़ से इस शेर के लिए विशेष बधाई!

सत्य है, दायित्व पालन और मज़बूरी के बीच
फ़र्क़ करता है सदा, अंतिम प्रहर का जागना !      सच है, दिखावा करने वाले बहुत दूर तक नहीं जा पाते।

फ़िक्रमन्दों से सुना, ये उल्लुओं का दौर है
क्यों न फिर हम देख ही लें ’रात्रिचर’ का जागना ।      कई बार ऐसा ही लगता है, जब दुनिया ही बुरी है तो हमीं क्यों अच्छे। बहुत ख़ूब!

राष्ट्र की अवधारणा को शक्ति देता कौन है ?
सरहदों पर क्लिष्ट पल में इक निडर का जागना !     एक सैनिक ही है जो इन दिनों देश की निःस्वार्थ सेवा में संलग्न है। बाकियों का क्या कहें।

क्या कहें, बाज़ार तय करने लगा है ग़िफ़्ट भी
दिख रहा है बेड-रुम तक में असर का जागना ।        सर, इस शेर का सानी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका।

हर गली की खिड़कियों में था कभी मैं बादशाह
वो मेरी ताज़ीम में दीवारो-दर का जागना !           वाह! बहुत ख़ूब शेर!

आज के हालात पर कल वक़्त जाने क्या कहे ?
किन्तु ’सौरभ’ दिख रहा है मान्यवर का जागना !    वाह! वाह!!

आदरणीय सौरभ सर, आपकी ग़ज़ल बेहद पसन्द आयी। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर!

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