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ग़ज़ल - भूल जा संवेदना के बोल प्यारे // --सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२

फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में
बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में

शांति की वो बात करते घूमते हैं
किन्तु कुछ कहते नहीं अपने नगर में

शाम होते ही सदा वो सोचता है-
क्यों बदल जाता है सूरज दोपहर में

भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
दौर अपना है तरक्की की लहर में

हो गया बाज़ार का ज्वर अब मियादी
और देहाती दवा है गाँव-घर में

आदमी तो हाशिये पर हाँफता है
वेलफेयर-योजनाएँ हैं ख़बर में

क्यों न फिर बरसात का मौसम मज़ा दे
चल रही जब नाव, काग़ज़ की, लहर में

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में

हँस रहा ’सौरभ’ अगर.. तो साथ हँसिये..
देखनी क्यों कील उसके पाँव-सर में ?
***************
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 9:12pm

आ० मैं  तो सकते में आ गया था . क्या गजल में शांति  शा न ति  पढ़ा जाएगा . क्योंकि मैंने इस तरह के शब्दों को २ १ ही समझा है  पर नीलेश भाई और आ0  दीदी ने बात साफ़  कर दी . जय हो .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2016 at 9:06pm

शान्ति -२१ ही होता है आद० तस्दीक जी ये मिसरा सही है |

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2016 at 9:03pm

और हाँ ..इसे बतर्ज़ उर्दू ..शा..न ति   नहीं  पढ़ा जाएगा ..शां २ +ति १ ये सही तक्तीअ होगी
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2016 at 9:01pm

आ. तसदीक़ साहब  ..शान्ति की ति प्राकृतिक लघु  है शान्ती नहीं है  ये अत: मिसरा हर लिहाज से सही है  

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2016 at 8:37pm

मोहतरम जनाब सौरभ साहिब ,   शेर -२ का ऊला मेरे हिसाब से बहर में नहीं है ,'' वो'' शब्द  ज़्यादा हो रहा है ---तक्तीअ देखिये शान्ति  की वो बात करते घूमते हैं ---इस मिस रे में आप शान्ति की इ को गिरा कर मात्रा गिंन रहे हैं । अगर इसे शांत लिख दें तो बहर में आजायेगा । शान्ति की वो बात करते घूमते हैं

 २११  २   १  २१  २२   २१२ २

शांत की वह बात करते घूमते हैं

 २१  २   २  २१   २२   २१२  २

आपकी ग़ज़ल की बहर  है ( फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन  -फ़ाइलातुन )(  २१२२ -२१२२ -२१२२ )

सादर                                                    

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 2, 2016 at 12:39pm
आदरणीय सौरभ जी,
सरलत भाषा में कही इस अद्भुत, प्रासंगिक ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको।
किसी ऐसे शे'र को नहीं चुन पाया,जिसकी अलग से तारीफ़ कर सकूं।
सादर।।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:25pm

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब, आपने प्रस्तुति को समय दिया इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.

आपके सुझाव के अनुसार मैंने उक्त मिसरे को देख लिया. आप जो कुछ कहना चाहते हैं वह मेरी समझ में तो नहीं आया. महती कृपा होगी यदि आप स्पष्ट भी कर दें. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:21pm

आपके तोह्फ़े से मन प्रसन्न हुआ आदरणीय नीलेश नूर जी. आपकी सराहना से मन प्रसन्न है. हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:20pm

आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी सदाशयता के लिए आपका आभारी हूँ .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:19pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपको प्रस्तुति रुचिकर लगी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद 

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