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इंतज़ार ....

ये बादे सबा
आज किसकी सदा लाई है
कुछ कम्पन्न है
कुछ नमी है
कुछ भीगी सी तन्हाई है
शायद ! अधूरे अहसासों ने
ज़हन में करवट ली है
लफ्ज़ लबों की हदों पर
तिश्नगी के अज़ाब में
डूबे नज़र आते हैं
इन साँसों की बेचैनियों में
जाने किस अजनबी का ख़ुलूस
करवटें लेता है
ये मेरी तदब्बुर में
किसके लम्स रक्स करते हैं
कोई तो नाख़ुदा होगा
जो मेरी हयात के सफ़ीने को
साहिल तक ले जाएगा
दबे पाँव आकर
मेरी खाकाए-हयात में
अपनी चराग़े-मुहब्बत जला जाएगा
अपनी पोरों की मस से
मेरे आरिजों पे गिरी
उलझी ज़ुल्फ़ों को सुलझा जाएगा
इक मुद्दत का इंतज़ार
इक पल में मिटा जाएगा

(ख़ुलूस =सच्चा प्यार /तदब्बुर =सोच/मस=स्पर्श/खाकाए -हयात=ज़िंदगी का चित्र )

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित



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Comment by Samar kabeer on May 19, 2016 at 6:50pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, इस शानदार प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Pawan Kumar on May 19, 2016 at 12:36pm

मेरी खाकाए.हयात में
अपनी चराग़े.मुहब्बत जला जाएगा
बेहतरीन
हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 9:15pm

आदरणीय तस्दीक अहमद साहिब प्रस्तुति आपकी तारीफ़ की कदमबोसी करती है। आपकी आत्मीय प्रशंसा का  दिल से आभार। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 18, 2016 at 9:12pm

एक मुद्दत का इंतज़ार एक पल में मिटा जायेगा ------वाह जनाब सुशिल सरना साहिब , दिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 9:08pm

आदरणीय जान गोरखपुरी जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना पाकर धन्य हुई।  आपका दिल से आभार। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2016 at 6:15pm
कोई तो नाख़ुदा होगा
जो मेरी हयात के सफ़ीने को
साहिल तक ले जाएगा

बेहद शानदार हार्दिक बधाई सर।

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