For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सच का ओज......'जान' गोरखपुरी

२२२ /२२२ /२२

सच का ओज भरम क्या जाने
रौशनी मेरी तम क्या जाने
*
अँधियारे को झुकने वाले
इक दीये का दम क्या जाने
*
दुधिया रंग नहाने वाले
लालटेन का गम क्या जाने
*
मटई प्याल की सौंधी बातें                       मटई/मटिया (भोजपुरी)= मिट्टी
पालथीन के बम क्या जाने
*
हमको सिर्फ साकी से मतलब
और कोई मय हम क्या जाने
*
बात बात पे मुकरते हैं जो
क्या होती है कसम क्या जाने
*
क्या है ‘जान’ बशर का मजहब
गो ये दैरो हरम क्या जाने

***************************************
मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
***************************************

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 29, 2015 at 2:33pm

आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सरजी! आपकी टिप्पणी से मनोबल बहुत ऊँचा हुआ !आगे से और तत्पर होकर,रचनाओं को और अधिक समय देने का प्रयास करूँगा!!हार्दिक आभार आदरणीय इसी प्रकार स्नेह व् मार्गदर्शन बनाए रखें!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 8:14pm

आज मन खुश है, भाई.

हमको सिर्फ़ है साकी से काम .. . इस एक मिसरे को छोड़ दें तो इस ग़ज़ल में फेलुन फेलुन .. फ़ा  की रवानी है. मैं भी आदरणीय नीलेश भाई के कहे का अनुमोदन करता हूँ.

शुभेच्छाएँ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:21pm

बात बात मुकरने वाले

क्या होती है कसम क्या जाने...बहुत बढ़िया 

दुधिया रंग नहाने वाले

लालटेन का गम क्या जाने.. जान जी ये दो शेर तो मुझे बेहद पसंद आये ,,इस लाजबाब ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2015 at 12:11pm

प्रिय जान !

 आपकी  गजल् पढी . मुझे यह कहने में संकोच  नहीं  कि नवोदितो में आप सचमुच प्रतिभावान हैं I  इसलिये आप  परिश्रम करते रहे . सस्नेह .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 9:32am

आत्मीय प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार आ० मोहन सेठी 'इंतजार' सर!सादर

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 28, 2015 at 8:52am

क्या बात है ...रौशनी मेरी तम क्या जाने....उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:13am

आ० समर सर! गजल पर आपकी दाद पाकर आशान्वित हुआ!हार्दिक आभार!आ० स्नेह बनाये रखें!सादर

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:11am

बहुत बहुत आभार आ० मिथिलेश सर! गजल को मात्रिक भर में पुनः अवलोकन करता हूँ!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:10am

हार्दिक आभार आ० बड़े भाई केवल प्रसाद जी!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:09am

आ० सिखा जी हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Jun 6
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service